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सु० प्र०
॥ १३२ ॥
कत्वाश्च मीमांसं सर्ववेदिनम् ||२८|| सर्वतो हि विशुद्धत्वाच्छुद्ध नारायणं ननु । सर्वकर्मारिननाद्धरं हरीशनायकम् ॥६॥ मोहान्धकारभेदत्वाज्जगत्सूर्य महाप्रभुम् । जगदाह्लादकत्वाच्च जगचन्द्र सुधाकरम् ||१०|| सर्वभूतैः प्रपूज्यत्वाद्ध ननायं प्रमाणकम् । श्रेष्ठत्वात्परमात्मानं योगिगम्यागतीश्वरम् ||३१|| ज्ञानामृतमहापूरैः सुसाविलजगत्त्रयम् । स्वाद्वादनायक दिव्यं देवदेवं स्वयम्भुवम् ||२३|| हरीशपूज्यवादाच्जमिन्द्रनागेन्द्रवादेतम् । शरण्यं सोफोरानं स्वरिम् ॥३३॥ एतादृशं हि चाहन्तं नमुरासुरपूजितम् । ध्यायेत्कर्म विनाशार्थं स्थिरचित्तेन भक्तितः ॥ ३४॥ त्रात्रारं सर्वलोकानां रचितारं पितामहम् । द्वेत्तारं भवत्रल्लीनां तारकं सुखकारकम् ||३५|| तीर्थनार्थं महातीर्थं सर्वतीर्थनमस्कृतम् । लोकालोकविभायुक्तं पूर्णसामर्थ्यधारकम् ||३६|| श्रादिमध्यान्तहीनं तं वर्द्धमानं सनातनम् । सत्यप्रमाणभूतं च दयालंकृतविग्रहम् ||१७||
ज्योतिरूप हैं सर्वज्येष्ठ हैं, सुगत हैं, पुरुषोत्तम हैं, सबके द्वारा पूजा करने योग्य हैं - इसलिये अर्हत हैं, कर्मों को नाश करने के कारण जिन हैं, तत्रोंका पूर्ण विचार करनेके कारण मीमांसक हैं, समस्त तवोंके ज्ञाता हैं, सर्व ओरसे विशुद्ध होनेके कारण शुद्ध हैं, नारायण हैं, कर्मोंका नाश करनेके कारण इर हैं, इन्द्रोंके भी स्वामी हैं, मोहरूपी अन्धकारको नादा करनेके कारण जगत् के सूर्य हैं, महादेदीप्यमान हैं, जगत्को आबाद करनेके कारण जगत् के चन्द्रमा हैं, उनसे वचनरूपी अमृत सदा झरता है, समस्त जीवोंके द्वारा पुज्य होनेके कारण भूतनाथ कहलाते हैं, वे भगवान् प्रमाणभूत हैं, श्रेष्ठ होनेके कारण परमात्मा हैं, योगियोंके गम्य होनेके कारण यतीश्वर हैं, उन्होंने ज्ञानामृत के महापूरसे तीनों जगत्को भर दिया है, वे भगवान् स्थाद्वादके स्वामी हैं, देवोंके देव हैं, स्वयंभू हैं, उनके चरणकमल इन्द्रोंके द्वारा भी पूज्य हैं, इन्द्र नागेन्द्र सब उनकी वन्दना करते हैं, . वे भगवान् शरणभूत हैं, मङ्गल हैं, लोकोत्तम हैं और समस्त जीवोंका हित करनेवाले हैं, ऐसे भगवान् अरहंत देवको अपने कर्मोंको नाश करनेके लिये स्थिर चित्तसे मक्तिपूर्वक ध्यान करना चाहिये || ९-३४ ॥ वे भग वान् अरहंत देव तीनों लोकोंकी रक्षा करनेवाले है, स्वयं सुरक्षित हैं, पितामह हैं, संसाररूपी बेलको नाश करने बाले हैं, संसारको पार कर देनेवाले हैं, सुख देनेवाले हैं, तीर्थनाथ हैं, महातीर्थ हैं, समस्त तीयोंके द्वारा नमस्कार करने योग्य हैं, लोक आलोकके स्वरूपको निरूपण करनेवाले हैं, पूर्ण सामर्थ्यको धारण करनेवाले