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सु० प्र० ॥ १६४ ।।
शीतं च वात्युष्णं क्षेत्र दुःखमस्ति वा ॥ १७॥ यो मांसभक्षणासको लोलुपी विषयादिषु । स जीवो नरके दुःखं लभते नात्र संशयः || १८ || मधुसेवनतो जीवः श्वभ्रं गच्छति भीमके। मद्यपायी मतिभ्रष्ट चिरं गच्छति दुर्गती ||१६|| सप्तव्यसन युक्त इन्द्रियास मानसः । मिध्याधर्मे हि संतीनः श्वभ्रं दुःखं विभर्ति सः ||२०|| हिंसा स्तेयानृतामझ संगादिपापतो ननु । अन्यायामक्ष्यतो जीवः श्वभ्रं गच्छति भीमके ||२१|| सत्यदेषं परित्यज्य मिथ्यादेवं भजन्ति ये । भ्रमात्र जडा दीर्घसंसारे पर्यटन्ति वा ||२२|| गुरुद्रोहं प्रकुर्वन्ति सन्मार्गं लोपयन्ति ये । मोहात्सर्वं हि वैयात्यं कुर्वन्वि सुखलिप्सया ||२३|| जिनागमविरुद्ध यल्लेखनं प्रतिभाषणम् । नूनं ते नरके घोरे प्रयान्ति मलिनात्मकाः ||२४|| सज्जादिलोपनाल्लोके महापापं प्रजायते । तेन पापेन जीवोऽयं चिरं भ्रमति दुर्गती ||२|| सज्जासिलोपनं येन कृतं तेन च पापिना |
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तेल में जलाते हैं. अग्निकट पटक देते हैं, वैतरणी नदीमें पटक देते हैं। इस प्रकार वे नारकी परस्पर एक दूसरेको दुःख दिया करते हैं। इसके सिवाय महांकी भूमि या तो अत्यन्त उष्ण है या अत्यन्त शीत है, उसके दुःख भी उनको सहने पड़ते हैं ॥१५- १७॥ जो जीव मांसमक्षण में आसक्त हैं, अथवा जो विषयसेवन के लोलुप हैं ऐसे जीव नरक में पड़कर दुःख भोगते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है ||१८|| जो जीव शहद खाते हैं, वे भी भयानक नरक में पढ़ते हैं तथा मद्य पीकर अपनी बुद्धिको भ्रष्ट करनेवाले मी चिरकालतक नरकरूप दुर्गतिमें पड़े रहते हैं ||१९|| जो जीव सातों व्यसनों का वा किसी एक दो मी व्यसनोंका सेवन करते हैं, जिनका मन इन्द्रियोंके विषयोंमें तल्लीन है और जो मिथ्या धर्मों में लीन रहते हैं, ऐसे जीव नरकमें पढ़कर महादुःखोंको योगा करते हैं ||२०|| हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह आदि पार्पोसे तथा अन्याय और अभक्ष्य भक्षण से यह जीव अवश्य ही भयानक नरक में जा पड़ता है ||२१|| जो जीव भ्रमसे यथार्थ देवको छोड़कर मिथ्या देवोंका सेवन करते हैं, वे मूर्ख सदा दीर्घ संसारमें परिभ्रमण किया करते हैं ||२२|| जो जीव गुरुद्रोह करते हैं, श्रेष्ठ मार्गका लोप करते हैं, मोहनीय कर्मके उदयसे सुखकी इच्छा करते हुए
समस्त कार्य विपरीत
ही करते हैं, जिनागमके विरुद्ध लिखते हैं वा भाषण देते हैं ऐसे मलिन आत्माको धारण करनेवाले वे लोग घोर नरक में अवश्य पढ़ते हैं ||२३-२४ ॥ इस संसार में सज्जातिका लोप करनेसे महापाप उत्पन्न होता है। और उस पाप से यह जीव चिरकालतक दुर्गतियों में परिभ्रमण किया करता है। जिस मोही जीवने सज्जातिका
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