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________________ अष्टमोऽधिकारः पुनश्च सात-सात दिनों में पूर्व आहार की अपेक्षा से शत गुणित उत्कृष्ट और दुर्लभ ऐसे भिन्न-भिन्न, आहार तीन बार लेने की प्रतिज्ञा करता है, आहार की प्राप्ति होती है तो तीन, दो, और एक नास लेता है, ये तीन भिक्षु प्रतिमायें हैं। तदनन्तर रात्रि और दिन में प्रतिमायोग धारण करता है पुनः प्रतिमायोग से ध्यानस्थ होता है ये दो भिक्षु प्रतिमा हैं। इससे पहले अवधि और मनःपर्य यज्ञान प्राप्त होते हैं, अनन्तर सूर्योदय होने पर उक्त महामना महाधैर्यशाली मुनिराज केवलज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं। इस तरह ये बारह भिक्षु प्रतिमायें जिनागम में वर्णित हैं। तेरह क्रियायें-पांच महालत, पांच समिति और तीन गुप्ति । चउदह जीवसमास-बादर और सूक्षम एकन्द्रिय, द्वान्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय. असैनो पंचेन्द्रिय, सेनो पंचेन्द्रिय, सान युगल पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से १४ प्रकार के जीव समास । पन्द्रह प्रमाद-५ इन्द्रिय-स्पर्श न. रसना, प्राण, चक्षु, कर्ण । ४ विकथा-स्त्रीकथा, राजकथा, चोरकथा, भोजनकथा। ४ कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ । १. निद्रा। १. स्नेह् । सोलह प्रवचन भेद-७ विभक्तियाँ-प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमो, षष्ठी, सप्तमी। ३ काल-भूतकाल, बर्तमानकाल, भविष्यकाल । ३ लिंग-स्त्रीलिंग , पलिंग, नपुंसकलिंग । ३ वचन-एकवचन, द्विवचन, बहुवचन । सत्रह असंयम-हिंसादि पाँच पाप, पाँच इन्द्रियाँ, चार कषाय, मन, वचन, काय को कुचेष्टा । अठारह असम्पराय-सम् अर्थात् समीचीन (श्रेष्ठ प्रधान 'आय' अर्थात् पुण्य का आगमन) जिनसे होता है उन्हें 'सम्पराय' कहते हैं । इसके निषेध करनेवाले साधनों को असंपरायिक काहते हैं। वे निम्न प्रकार के हैं । उत्तमक्षमादि १० प्रकार के धर्म, ईर्यादि ५ प्रकार की समिति तथा मन-वचन-काय रूप गुप्ति का पालन नहीं करना। उन्नीस नाथाध्ययन (धर्मकथायें )-१. उपकोडनाग-श्वेतहस्ती नागकुमार की कथा। २. कुम्म कूर्म कथा । ३. अंड्य-अण्डज कथा ५ प्रकार की (१ कुमकुट कथा २ लापसपल्लिकास्थित शुक्र कथा ३ वेदक
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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