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________________ सुभाषितसंदोहः 1254 : १०-१२: 252) अनेकगतिचित्रितं 'विविधजातिभेदाकुलं समेत्य तनुमद्गणः प्रचुरचित्र'चेष्टोद्धतः । पुराजितविचित्रकर्मफलम विचित्रो सर्नु प्रगृहा नटवत्सवा भ्रमति जन्मरमाङ्गणे ॥१०॥ 253) अचिन्त्यमतिदुःसहं "त्रिविषवुःखमेनो ऽजितं चतुनिषगतिभितं भवभूता न किं प्राप्यते । शरीरमसुखाकरं जगति गृलतामुतता' तनोति न तथाप्ययं विरतिमूजिता पापतः ॥११॥ 254) "भजस्मतनुपोस्तिो विरहकातरः कामिनी करोति मदनोजिमतो विरतिमङ्गनासङ्गतः । तपस्यति मुनिः सुखी हसति विक्लयः क्लिष्यति विचित्रमति चेष्टितं श्रयति संस्तो जन्मवान् ।। १२॥ जरादिततनुः विगतसर्वचेप्टः जरी भवति । (एवं) नटवत् प्रचुरवेषरूपं वपुः दधाति ॥ ९॥ अनेकगतिचित्रितं विविषजातिभेदाकुलं समेत्य प्रचुरचित्रचेष्टोवतः पुराजितविचित्रकर्मफलमुक् तनुमद्गगः विचित्रां तनु प्रगृह जन्मरगाङ्गणे नटवत् सदा भ्रमति ॥ १० ।। जगति मसुखाकरं शरीरं गल्ता मुञ्चता भवभूता चतुर्विधगतिश्रितम् अचिन्त्यम् अतिदुःसहम् एनोजितं त्रिविषदुःख म प्राप्यते किम् ? तथापि अयं पापतः जिर्ता विरतिं न तनोति ॥ ११ ॥ अम्मवान् संसृती विचित्रमति चेष्टितं अयति । अतनुपीरितः विरहफातरः कामिनी भजति । मदनोज्यितः अङ्गनासङ्गतः चेष्टा करनेको, हाथ-पांव हिलानेको भी शक्ति नहीं रहती है। इसप्रकार इस संसारस्पो रंगभूमीपर यह जीव नाना प्रकारके शरीररूप वेष धारण कर नटकी तरह नाट्यलीला करता है ॥ ९॥ जिसप्रकार रंगभूमिमें नट अनेक प्रकारके चित्र विचित्र पात्रोंके रूप धारण कर उन्हीं जैसी चेष्टा करता है और दर्शकलोकोंको वास्तविक की सी भ्रांति करा देता है, उसीप्रकार यह जीव भी बन्ममरणरूप इस संसाररंगभूमिपर मनुष्य सियंच नरकदेव इन गप्तियोंमें नानाप्रकारकी एकोद्रियादि जातियोंमें जन्म लेकर नानाप्रकारको शुभ-अशुभ भावरूप चेष्टा करता हुआ अपने पूर्वोपाणित नानाप्रकारके कोका सुख-दुःख फल भोगता हुवा भ्रमण करता है। जब जिस पर्यायको धारण करता है उस समय उससे तन्मय होकर में उस पर्यायरूप ही हूं ऐसा भ्रमसे मानता है ॥ १०॥ इस संसारमें भय धारण करनेवाले इस बीयने चतुर्गसिमें पापकर्मसि उत्पन्न होने वाला शारीरिक, वाचिक, मानसिक तीनों प्रकारका प्रचित्य अति दुःसह ऐसा कौन-सा दुःख है जो कि नहीं भोगा । अर्थात् जन्म लेते समय दुःखकारक शरीर धारण करते हुए और मरण आनेपर उसे छोड़ते हुए नानाप्रकारका दुःख भोगा है। तथापि यह जीव पापकर्मसे उत्कृष्ट विरति-विराग परिणतिको धारण नहीं करता, यह बड़े आश्चर्य की बात है ॥११॥ यह जीव संसारमें कभी अनंग-कामदेवसे पीड़ित होकर प्रिय स्त्रियोंके विरहसे माकुलित होकर स्त्रियोंका संगम करता है । कभी कामविकार शांत हो जानेपर स्त्रियोंसे विरक्ति धारण करता है। कभी मुनि-तपस्वी होकर तप करता है। कभी वैमवसुखसे सुखी होता है तब आनंद मानता है हंसता है । कभी दुःखसे दुःखी होता है । तब शोक करता है। इस प्रकार इस संसारमें यह एकही जीव नाना १ स बिबिधि" । २ स मद्गुणः । ३ स "चित । ४ स विचित्र । ५ स त्रिविधि । ६ स गृलता मुञ्चता । ७ स भजन्त्य । ८ स सुखा । १ स सहति । ...
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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