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________________ सुभाषितसंदोहः [07 : ४-५67) चक्षुःशयं प्रचुररोगशरीरबाधास्वान्ताभिधातगतिभङ्गममन्यमानः । ___ संस्कृत्य पत्रनिचयं च मी' विमर्थ तृष्णातुरो लिखति लेखकतामुपेतः॥५॥ 68) विश्वंभरां विविधजन्तुगणेन पूर्णा स्त्री गर्भिणीमिष कृपामपहाय मर्त्यः । नानाविधोपकरणेन हलेन दीनो लोभार्दितः कषति पापमलोकमानः ॥ ६॥ 69) भोगोपभोगसुखतो' विमुखो मनुध्यो रात्रिंदिवं पठनचिन्तनसँक्तचित्तः । शास्त्राण्यधीय विविधानि करोति लोभावभ्यापन शिशुगणस्य विवेकशून्यः ॥ ७॥ 70) वस्त्राणि सीन्यति तनोति विचित्रचित्रं मृत्काष्ठलोहकमकादिविधि चिनोति । नृत्य करोति रजकत्वमुपैति मर्त्यः किं किं न लोभवशवर्तितथा विधत्ते ॥ ८॥ 71) लोकस्य मुग्धधिषणस्य विवञ्चमानि कुर्वत्ररो विविधमानविशेषकस्या । संसारसागरमपारमत्री माणो वाणिज्यमन्त्र विदधाति विवृद्धलोमः ॥ ९॥ 72) अभ्येति नृत्यति लुनाति मिनोति भौतिकीणाति" इन्ति यपते" चिनुते विमेति । मुष्णाति गायति धिनोति विमति मिन्ते लोमेन सीम्मति पणायति याचते च ॥ १० ॥ तुष्णातुरः लेखकताम् उपेतः सन् नःक्षयं प्रचुररीमशरीरबाधास्वान्ताभिपातगतिभङ्गम् अमन्यमानः पत्ननिवयं संस्कृत्य 7 वीं विमर्च लिसति ॥ ५ ॥ दीनः लोभादितः मर्पः पापमलोकमानः कृपाम् अपहाम नानाविधोपकरणेन हलेन गर्भिणी श्रीम् इव विविधजन्तुगणेन पूर्ण विश्वंभरां कृषति ॥ ६ Ir लोभात, भोगोपभोगसुखत: विमुख: रात्रिदिवं पठनचिन्तनसक्तचित्तः मनुष्यः विविधानि शास्त्राणि अधीत्य विवेकशून्यः सन् शिशुगणस्य अत्र्यापनं करोति ॥७॥ वस्त्राणि सीव्यति विचित्रचिन तनोति मुस्काष्ठलोहकनकादि विधि चिनोति नृत्य करोति रजकत्वम् उपति, मत्पः लोभवनवतितया किं किं न विधत्ते ॥ ८ ॥ अव विवृयलोभः नरः अपारं संसारसापरम् अवीक्षमाणः विविधमानविशेषात्या मुग्धधिषणस्य लोकस्म विवञ्चनानि कुर्वन् वाणिज्यं विदधाति ॥ ९ ॥ लोभेन (नरः) तृष्णासे व्याकुल मनुष्य लेखक (मुनीम या कर्क) के स्वरूपको प्राप्त होकर आंखोंकी ज्योतिकी हानिको, अनेक रोगोंसे उत्पन्न होनेवाली शरीरकी पीडाको, मनके अभिघातको, उसकी यथेच्छ प्रवृत्ति होनेवाली बाधाको तथा स्थिरतापूर्वक बैठनेके कष्टको भी नहीं देखता है और पत्रों के समूहको व्यवस्थित कर एवं स्याहीको घोलकर लिखता है॥५॥लोमसे पीडित दीन मनुष्य गर्भिणी सीके समान अनेक जीवोंके समूहसे परिपूर्ण पृथित्रीको निर्दयतापूर्वक अन्य अनेक उपकरणोंके साथ हलके द्वारा जोतता है और उससे उत्पन्न होनेवाले पापको नहीं देखता है ।। विशेषार्थ-जिस प्रकार कामासक्त मनुष्य गर्भवती स्त्रीके साथ भी विषयसेवन करता है और उससे होनेवाले गर्भपातके पापको नहीं देखता है उसी प्रकार लोभी मनुष्य अनेक जीव-जन्तुओंसे परिपूर्ण पृथिवीको जोतकर खेतीको करता है और उससे होनेवाली जीवहिंसाका वह विचार नहीं करता है ॥६॥ मनुष्य लोभके कारण भोग और उपभोगके सुखसे विमुख होकर दिन-रात अपने चित्तको पढ़ने और पठित अर्थका विचार करनेमें लपाता है । तथा इस प्रकारसे अनेक शास्त्रोको पढ करके वह विवेकसे रहित होता हुआ बालकोंको पढ़ाता है॥ ७॥ मनुष्य लोभके वश होकर वस्त्रोंको सीता है, अनेक प्रकारके चित्रोंको बनाता है, मिट्टी, लकडी, लोहा एवं सुवर्ण आदिके विधानको करता है-उनसे अनेक प्रकारके उपकरणोंको बनाता है। नृत्य करता है, और धोबीके धंधेको प्राप्त होता है-दूसरोंके मलिन कपडे धोता है। ठीक है-लोभके वशमें होकर मनुष्य किस किस कार्यको नहीं करता है ! अर्यात् वह कार्य-अकार्यका विचार न करके सभी कुछ करता है ॥८॥ बढ़े हुए लोभके वशमें होकर मनुष्य भोले प्राणियोंको अनेक प्रकारके मानविशेषोंसे-नापने व तौलनेके हीनाधिक उपकरणोंसे-धोखा देकर यहां व्यापारको करता है और अपरिमित संसाररूप समुद्रको नहीं देखता है- लोभ स बाधाः, चाधा, बाधा। २ स स्वान्तावि, श्रांतामि', शोभि वाता", 'वांता", (Gloss:, चेतसनिरोध, अंधकार]। ३ स मपीविमर्थ । ४ स स्त्री । ५स' सुखितो। इस दिनं । सशक्ति', "शक्त', om वित्तः। ८ स 'धीति। ५स सत्यति। १.सकरोति। ११ सचिनोति । १२सदीक्ष्य। १३सक्रीणन्ति । १४स चपते। १५स विभर्ति पिनोति।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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