SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०. शौचनिरूपणद्वाविंशतिः 749: ३०-१० ] 746) यच्छुक शोणितसमुत्थमनिष्टगन्धं नानाविध कृमिकुलाकुलितं समन्तात् । पाण्याविदोषमलसच विनिन्दनीयं तद्वारितः कथमिर्च्छति शुद्धि भङ्गम् ॥ ७ ॥ 747 ) गर्भे शुचौ कृमिकुलैनिचिते शरीर यति मलरसेन नवेह मासान् । वर्चोगुहे कुमिरिवातिमलावलिप्ते शुद्धिः कथं भवति तस्य जलप्लुतस्य ॥ ८ ॥ .. 748) निन्द्येन वागविषयेण विनिःसृतस्य न्यूनोन्नतेन कुथिताविभृतस्य गर्भे । मासानवाशुचिगृहे वपुषः स्थितस्य शुद्धिः" प्लुतस्य न जलैः शतशो ऽपि सर्वैः ॥ ९ ॥ 749) यन्निमितं कुतितः कुयितेन पूर्ण सदा क्वथितमेव विभुते ऽङ्गम् । प्रक्षाल्यमानमपि मुनति रोमकूपैः प्रस्वेदवारि कथमस्य जलेन शुद्धिः ॥ १० ॥ २०३ व्रजन्ति ॥ ६ ॥ यत् शुक्रशोणितसमुत्यम निष्टगन्धं समन्तात् नानाविधकृमिकुलाकलितं व्याध्यादिदीप मलसा विनिन्दनीयं तत् अङ्गम् इह वारितः कथं शुद्धिम् ऋच्छति ॥ ७ ॥ अतिमलावलिप्ते वचगृहे कृमिः इव यत् शरीरं कृमिकुलैः निचिते अशु गर्भे इह मलरसेन नव मासान् वर्षितं जलप्लुतस्य तस्य कथं शुद्धिः भवति ॥१८॥ अशुचिगृहे गर्भे नव मासान् स्थितस्य कुथितादिभृतस्य न्यूनोन्नतेन वागविषयेण निन्द्येन विनिःसृतस्य सर्वः जलैः शतशः अपि प्लुतस्य वपुषः शुद्धिः न भवति ॥ ९ ॥ यत् बङ्गं कुथिततः निर्मितं कुथितेन पूर्ण सदा स्रोत्रं क्वषितम् एव विमुञ्चते प्रक्षाल्यमानम् अपि अनेक प्रकारके लट आदि क्षुद्र कीड़ोंसे सर्वतः परिपूर्ण है, व्याधि आदि दोषों एवं मलका स्थान है, तथा निन्दनीय है, वह यहाँ जलसे केसे शुद्धिको प्राप्त हो सकता है ? नहीं हो सकता है ॥ ७ ॥ विशेषार्थ - अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार किसी वस्त्रादिमें यदि काला आदि धब्बा पड़ जाता है तो वह जल व साबुन आदिसे धो डालनेसे नष्ट हो जाता है, परन्तु जो कोयला स्वभावसे काला है वह जलमें रगड़-रगड़ कर धोये जानेपर भी कभी उस कालिमासे रहित हो सकता है क्या । ठीक इसी प्रकारसे जो शरीर स्वभावतः मलस्वरूप है वह गंगास्नानादिसे कभी निर्मल नहीं हो सकता है, उससे केवल उसके कपरका ही मल दूर हो सकता है। अतएव उसकी शुद्धि के लिये निर्मल सम्यग्दर्शनादिको धारण करना चाहिये ॥७॥ जिस प्रकार अतिशय मलसे परिपूर्ण पुरीषालय (पाखाना ) में क्रीड़ा वृद्धिको प्राप्त होता है उसी प्रकार प्राणीका जो शरीर कीड़ोंके समूहसे व्याप्त और मलसे परिपूर्ण अपवित्र माताके गर्भमें नो मास तक मलरससे वृद्धिको प्राप्त हुआ है उसकी भला जलमें स्नान करने से कैसे शुद्धि हो सकती है ? नहीं हो सकती है ॥ ८ ॥ जो शरीर अपवित्र मल-मूत्रादिके गृहस्वरूप गर्भ में नौ महोने तक स्थित रहकर दुर्गन्धित पदार्थोंस पुष्ट होता हुआ उस निन्द्य योनिमार्गसे बाहर निकलता है जो कि नीचाऊँचा द वचनके अगोचर है, उसकी शुद्धि जलोंसे सैकड़ोंवार भी धोनेगर नहीं हो सकती ॥ ९ ॥ जो शरीर दुर्गन्धयुक्त सड़े-गले पदार्थोंसे रचा गया है, उन्हीं दुर्गन्धित वस्तुओंसे परिपूर्ण है, निरन्तर १ स सुद्ध, शुद्ध" । २ स शरीरे । ३ स °लिप्तो । ४ स न्यूनान्मतेन, न्यूनान्मृतेन, न्यूनारमतेन । ५ स शुद्ध ६ स श्रोत्रः । ७ स कुथिसमेव, कुथितमेव ।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy