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________________ [ २०, मद्यनिषेधपञ्चविंशतिः ] 498) भवति मधवशेन मनोभ्रमो' भजति कर्म मनोभ्रमतो यतः । बजति कर्मवशेन च दुर्गति त्यजत' मखमतस्त्रिविषेन भोः ॥१॥ 499) हसति नृत्यति गायति बल्गति भ्रमति पावति मूर्छति शोचते। पतति रोदिति जल्पति गावं घमति धाम्यति मधमदातुरः ॥२॥ 500) स्वसृसुताजननोरपि मानवो वमति सेषितुमस्तमति र्यतः । . सगुणलोकविनिन्दितमद्यतः किमपरं खनु कष्टतरं ततः ॥३॥ 501) गलति वस्त्रमषस्तनमोक्यते सकलमन्यतया लपते तनुः । स्खलति पावयुगं पथि गच्छतः किमु न मद्यवशाच्यते जनः ॥ ४ ॥ 502) असुभृतां यषमाचरति क्षणावति वाक्य 'मसामसूनतम् । परकलनधनान्यपि वाञ्छति न कुरुते किमु मघमवाकुलः ॥ ५ ॥ मद्यवशेन मनोभ्रमो भवति । यतः मनोभ्रमतः नरः कर्म मजति । कर्मवशेन च दुर्गति तजति । अतः भो: त्रिविधेन | मधं त्यजत ॥ १।। मद्यमदातुरः हसति, नृत्यति, गायति, वल्गति, प्रमति, पावति, मुम्छति, शोचते, पतति, रोदिति, गद्गदं जल्पति, धमति, पाम्यति ॥ २ ॥ यतः सगुणशोकविनिन्दितमद्यतः अस्तमतिः मानवः स्वस्सुताजननी. अपि सेवितुं व्रजति । ततः खल अपरं कष्टतरं किम ॥३॥ मद्यवशात जन: किम न श्रयते । अपस्तनं वस्त्रं गलति । सकलमन्यतया ईक्ष्यते । तनुः श्लयते । पथि गच्छतः पादयुगं स्खलति ।। ४ ।। मद्यपदाकुलः असुभृतां क्षणात् वधमाचरति । असह्यम् वसू चूंकि मद्यके प्रभावसे मनोभ्रम होता है-भले-बुरेका विचार नष्ट हो जाता है, इस मनोभ्रमसे प्राणी कम की सेवा करता है-पापका संचय करता है, तथा उस कर्मके वश होफर वह नरकादि दुर्गतिको प्राप्त होता ।। है; इसीलिये हे भव्य जीवो! आपलोग उस मद्यका मन, वचन और कायसे परित्याग कर दें ॥१॥ महाके | नशेमें चूर होकर मनुष्य हंसता है, नाचता है, गाता है, चलता है, चक्कर काटता है, दौड़ता है, मूर्छित हो | जाता है, शोक करता है, गिरता है, रोता है, गद्गद् होकर भाषण करता है, फूंकता है और .....है ॥२॥ | गुणवान् लोगोंके द्वारा निन्दित मद्यका पान करनेसे मनुष्य बुद्धिहीन होकर चूंकि बहिन, पुत्री और माताको भी भोगनेके लिये उद्यत हो जाता है; अतएव इससे और अधिक कष्टकी बात क्या हो सकती है ? अभिप्राय । यह कि जिस मद्यके पीनेसे मनुष्य माता और पत्नी आदिके भी विवेकसे रहित हो जाता है उस मद्यका सर्वथा त्याग करना चाहिये ॥ ३ ॥ मद्यके प्रभावसे मनुष्यका वस्त्र गिर जाता है, मद्यपायो मनुष्य अपनेको सर्वश्रेष्ठ समझकर दूसरोंको नीचा देखता है उन्हें तुच्छ मानता है, उसका शरीर शिथिल हो जाता है और मार्गमें चलते हुए उसके पैर लड़खड़ाते हैं। ठीक है-उस मद्यके प्रभावसे मनुष्य भला किसका आश्रय नहीं लेता है ? अर्थात् वह सब अनर्थोको करता है ॥ ४ ॥ मद्यके नशेसे व्याकुल मनुष्य क्या नहीं करता है ? अर्थात् वह सब ही अकार्यको करता है-वह क्षणभरमें प्राणियोंको हिंसा करता है, असह्य असत्य वचनको बोलता है और १ स मतिभ्रमा । २ स स्पति । ३ स भो। ४ स चलाति, वलाति । ५ सरोदति। ६ स मद्य मुदारधी । ७ गति° । ८ स सगुणि° 1 ९ समीक्षते। १० स यत: for जनः । ११ स वाच्य ।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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