SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० सुभाषित संबो 437 ) यद्वत्क्षिप्तं गलति सकलं छिद्रयुक्ते घटे इम्भ'स्तिकतालाबूनिहितमहितं जायते दुग्धमुखम् आमे पात्र रचयति भिवां तस्य नाशं च याति तद्दत्तं विगततपसे केवलं ध्वंसमेति ॥ १४ ॥ 488) छतविरहिताः क्रोधलोभाविवन्तो : नानारम्भप्रहितमनसो ये भवप्रन्थसक्ताः ' । ते वातारं कथमसुखतो रक्षितुं सन्ति शक्ता नावा लोहं न हि जलनिधेस्तायंते लोहमय्या || १५ ॥ [ 487 : १९-१४ विधत्वं याति । तद्वत् दानं पात्रम् माप्य सफलम् अफलं भवति इति मत्वा शमयमभूतां संयतानां यतीनां दानं देयम् ॥ १३ ॥ यत् छिद्रयुक्ते घटे क्षिप्तं सकलम् अम्भः गलति । तिक्तालाबूनिहितम् उद्धं दुग्धम् अहितं जायतें । आमे पात्रे निहितं दुग्धं तस्य भिदां रचयति नाशं गाति च । तद्वत् विगततपसे दत्तं केवलं ध्वंसम् एति ॥ १४ ॥ ये शश्वच्छीलव्रत विरहिताः कोषलोभादिवन्तः नानारम्भप्रहितमनसः मदग्रन्थसमता ते दातारम् असुखतः रक्षितुं कथं शक्ताः । हि लोहमय्या नावा जलनिधे लोहं न तायते ।। १५ ।। यथा क्षेत्र द्रव्यप्रकृतिसमयान् वीक्य उप्तं बीजं चारुसंस्कारयोगात् को - पाकर अनेकरूपताको प्राप्त हो जाता है; उसी प्रकार दान भी पात्रको प्राप्त करके सफल अथवा निष्फल हो जाता है । यह विचार करके शान्ति एवं संयमको धारण करनेवाले संयमी मुनियोंके लिये दान देना चाहिये || १३ || जिस प्रकार छिद्रयुक्त घड़े में रखा हुआ समस्त जल नष्ट हो जाता है, कडुवी तुंबड़ीमें रखा हुआ प्रशस्त ( मधुर ) दूध अहित कारक ( कडुवा ) हो जाता है, तथा कच्चे मिट्टीके पात्रमें रखा हुमा जल या दूध उसको नष्ट कर देता है और स्वयं भी नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार तपसे हीन मनुष्यको दिया गया दान केवल नाशको प्राप्त होता है ॥ १४ ॥ विशेषार्थं जिस प्रकार छिद्रयुक्त घड़े में रखा गया जल अथवा ऊसर भूमिमें बोया गया बोज व्यर्थ जाता है उसी प्रकार अपात्रके लिये दिया गया दान भी व्यर्थ हो जाता है - दाताको उसका कुछ भी फल प्राप्त नहीं होता, जिस प्रकार कडुवो बड़ो में रखा हुआ दूध अथवा सर्पके जाता है-उसी प्रकार दुष्ट जनके लिये तथा जिस प्रकार कच्चे मिट्टोके में गया हुआ दूध विकृत हो जाता है - कडुवा और विषैला हो दिया गया दान भी विकृत हो जाता है-दाताके लिये अहितकर हो जाता है, वर्तनमें रखा गया जल स्वयं तो नष्ट होता हो है साथमें वह उस वर्तनको भी नष्ट कर देता है उसी प्रकार अयोग्य पात्रके लिये दिया गया दान भी स्वयं नष्ट होकर उस पात्रको भी नष्ट कर देता है—उसे विषयव्यामुग्ध करके नरकादि दुर्गतिमें पहुँचाता है। इसीलिये बुद्धिमान दाताको पात्रके योग्यायोग्यका विचार करके ही दान देना चाहिये || १४ || जो मनुष्य निरन्तर शील व व्रतोंसे रहित हैं, क्रोध व लोभ आदिसे कलुषित हैं, अनेक प्रकारके आरम्भमें मनको लगाते हैं, तथा मद व परिग्रहमें आसक्त है; वे भला उस दाताकी दुखसे रक्षा करनेके लिये कैसे समर्थ हो सकते हैं ? अर्थात् नहीं हो सकते हैं। ठीक है - लोहनिर्मित नाव समुद्रसे लोहेको पार नहीं पहुँचाती है | अभिप्राय यह कि जिसप्रकार लोहेकी नाव स्वयं तो समुद्रमें डूबती ही है, साथ ही वह उसमें रखे हुए लोहे आदि भारी द्रव्यको भी उसमें डुबा देती है, उसी प्रकार अयोग्य जनके लिये दिया हुआ दान यों ही १ स ॰स्त्यक्त्वालाछू”, “लांबू । २ समुद्धं मुग्धं, "मुर्य, दुग्धमथम् । ३ स आमाप्रये । ४ स नाशत्वयात | ५ स तद्वदस्तं । ६ स शक्ताः। ७ स स्तोते ।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy