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________________ १२९ 456 : १८-७] १८. सुजननिरूपणचतुविशतिः 456) नश्यत्तन्नो भुवनभवनोद्भूततस्वप्रवर्शी सम्यग्मार्गप्रकहनपरो ध्वस्तदोवाकरधीः । पुष्यत्पनों गलिततिमिरो दत्तमित्रप्रतापो राजत्तेजा विवससहवाः सजनो भाति लोके ॥७॥ प्रेष्टितं निगदितं [ किम् ] ॥ ६ ॥ लोके नश्यत्तन्द्रः, भुवनभवनोद्भूततत्त्वप्रदर्शी, सम्पङमार्गप्रकटनपरः, ध्वस्तदोषाकरपीः, पुष्यत्ययः, गलिततिमिरः, दत्तमित्रप्रतापः, राजत्तेजाः सज्जनः, दिवससदृशः भाति ॥ ७॥ जगप्ति माश्याचाराः ये अनपेक्षाः सन्तः सापकारे जने कारण विषति, धरिश्याः मण्डनं ते जनाः विरलाः । ये स्वस्वकृरयप्रसिद्ध ध्रुवम् उपकृति कुर्वन्ति, दूसरोंका अपकार नहीं करता है, कोई यदि शाप देता हैगाली देता है या दुष्ट वचन बोलता है-तो भी जो विकारको नहीं प्राप्त होता है और न कभी क्रोध करता है आश्चर्य है कि उस सज्जन पुरुषकी इस चेष्टाको किसीने कहा है क्या ? अर्थात् उसको प्रवृत्ति अनिर्वचनीय है । अथवा आश्चर्य है कि उस सजनकी इस चेष्टाका सद्व्यवहारका किसीने निरूपण किया है ।। ६ ॥ आलस्यसे रहित, लोकरूप घरमें उत्पन्न हुए तत्त्वोंको दिख. लानेवाला, समोचीन मार्गको प्रगट करनेवाला, पपा (लक्ष्मी) को पुष्ट करनेवाला, अज्ञानरूप अन्धकारसे रहित, मित्रको प्रताप देनेवाला और तेजसे शोभायमान सजन लोकमें दिनके समान सुशोभित होता है ।।७।। विशेषार्थ--यहां सज्जनको शोभा दिनके समान बतलाई गई है। वह इस प्रकारसे-जिसप्रकार दिन दूसरोंकी तन्द्राको नष्ट करता है-उनको निद्रा एवं आलस्यको दूर करता है-उसी प्रकार सज्जन भी स्वयं निरालस होकर दूसरोंके भी आलस्यको दूर करता है, जिसप्रकार दिन अन्धकारके दूर हो जानेसे संसारको समस्त वस्तुओंको दिखलाता है उसी प्रकार सज्जन भी लोकको समस्त वस्तुओंको दिखलाता है-अपने सदुपदेशके द्वारा समस्त वस्तुओंके यथार्थ स्वरूपको प्रगट करता है, दिन यदि रास्तागीरोंके लिये जानेके योग्य मार्गकोरास्तेको-दिखलाता है तो सज्जन मनुष्य भी आत्महितैषी जनोंके लिये योग्य मार्गको दिखलासा है-मोक्षके मार्गभूत सम्यग्दर्शनादिका उपदेश देता है, दिन जहाँ दोषाकरकी श्रीको नष्ट करता है-रात्रिको करनेवाले चन्द्रकी कान्तिको फीका करता है-वहाँ सज्जन भी उस दोषाकरको श्रीको नष्ट करता है-दोषोंकी खानिभूत दुर्जनको शोभा (प्रभाव) को नष्ट करता है, दिन यदि सूर्यका उदय हो जानेसे कमलोंको प्रफुल्लित करता है तो सज्जन पुरुष पनाको प्रफुल्लित करता है-उसे पुष्ट करता है, दिन जैसे रात्रिके अन्धकारको नष्ट कर देता है वैसे ही सज्जन भी अन्धकारसे रहित होकर-अज्ञानसे स्वयं रहित होकर दूसरोंके भी अज्ञानान्धकारको नष्ट कर देता है, दिन यदि मित्रको सूर्यको-प्रतापशाली करता है तो सज्जन भी मित्रको-स्नेही बन्धुजनको प्रतापशाली करता है, तथा जिसप्रकार दिन सूर्यके तेजसे सुशोभित होता है उसी प्रकार वह सज्जन भी अपने ज्ञानरूप तेजसे सुशोभित होता है । इसीलिये जिसप्रकार सब ही जन दिनसे प्रेम करते हैं उसी प्रकार बुद्धिमान् मनुष्योंको सज्जनके प्रति भो प्रेमभाव रखकर सदा उसको ही संगतिमें रहना चाहिये ।। ७॥ जो सज्जन सदाचरणसे संयुक्त होते हुए अपने अपकारी जनके प्रति भी किसी प्रकारके प्रत्युपकारको अपेक्षा न करके दयाका व्यवहार करते हैं वे पृथ्वीके भूषणभूत सज्जन संसारमें बिरले ही है-थोड़े-से ही हैं। किन्तु जो जन १ स भविनो°, भवतो भूत । २ स पुष्पत्पद्यो । सु. सं. १७
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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