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सुभाषितसंबोहः 386) कर्षति वपति लुनीते योग्यति सीव्यति पुनाति वयते च ।
विवधाति किं न कृत्यं जठरानलशान्तये तनुमान् ॥ १२॥ 387) लज्जामपहन्ति नुणां मानं नाशयति वैम्पमुपचिमूते।
वर्धयति दुःखमखिलं जठरशिखो पमिलो बेहे ॥ १३ ॥ 388) गुणकमलशशाङ्कतनु गर्वग्रहनाशने महामन्त्रः ।
सुखकुमदो घविनेशो जठरशिखी बाधते कि मैं ॥१॥ 989) शिपिलोभवति शरीरं दृष्टिम्पित्ति विनाशमेति मतिः ।
- मूर्छा भवति जनानामुदरभुजगेन रष्टामाम् ॥ १५ ॥ 390) उत्तमकुहे ऽपि जातः सेवा विदधाति नोचलोकस्य ।
वदति च वार्चा नीचाभवरेश्वरपीडितो मर्पः॥१६॥ 391) वासोभूय मनुष्यः परवेश्मसु नोचकर्म विदधाति ।
चादुशतानि च कुरुते अठरवरीपूरचाकुलितः ॥ १७ ॥
रानसशान्तये कर्षति वपति सुनीते वीव्यति सोम्यति पुनाति वयते च । किं कृत्यं न विदधाति ॥ १२॥ नणां देहे वर्षितः जठरशिली लज्जाम् अपहन्ति, मानं नाशयति, देन्यम् उपचिनुते, अखिलं दुःखं वर्धयति ॥ १३ ।। गुणकमलशशाक्तनुः, गर्वप्रहनाशने महामन्यः, सुखकुमुदौदिनेशः जठरविलीम बाषते किम् ।। १४ ।। उदरमुजंगेन दष्टानां जनानां शरीरं शिथिलीभवति । दृष्टिः भाष्यति । मतिः विनाशम् एति । मूछों भवति ॥ १५॥ उदरेश्वरपीरितो मयः उतमकुले जातः अपि नौचलोकस्य सेवां विदधाति । नीचां वाचां प वदति ॥ १६ ॥ अठरदरीपूरणाकुलितः मनुष्यः परवेश्मसु दासोभूय इस पेटको मागको शान्त करनेके लिये मनुष्य क्या नहीं करता। उसीके लिये वह तपती हुई दोपहरीमें खेत जोतता है, फिर उसमें बीज बोता है। खेती पकने पर उसे काटता है। पेट भरनेके लिये जुआ खेलता है। कपड़े सीनेका काम करता है। सफाईका काम करता है और कपड़े बुनता है ॥ १२॥ शरीरमें प्रज्वलित उदराग्नि मनुष्योंको लज्जाको नष्ट कर उन्हें निर्मज्ञ बना देती है। उनके सम्मानको नष्ट कर देती है। उनमें दीनता ला देती है । इस प्रकार यह समस्त दुःखोंको बढ़ाती है। विशेषार्थ-मनुष्योंको जब भूख सताती है तो वे लज्जा और मानको त्याग दूसरोंके आगे हाय पसारते हैं और दीनतापूर्ण वचन कहते हैं ॥ १३ ॥ उदराग्नि गुणरूपी कमलोंको चन्द्रमाके समान है। जैसे चन्द्रमाके उदित होते ही खिले कमल बन्द हो आते हैं वैसे पेट में भूख लगने पर मनुष्यके सब गुण मन्द पड़ जाते हैं। गर्वरूपी प्रहको नष्ट करनेके लिये महामंत्र है । जैसे महामंत्रसे ग्रहपीड़ा नष्ट हो जाती है वैसे ही पेटको भूख मनुष्यके गर्वको चूर-चूर कर देती है। सुखरूपी सफेद कमलोंके लिये सूर्यके समान है। जैसे सूर्यके उदयमें सफेद कमल मुी जाते हैं ऐसे पेटमें भूख सताने पर सब सुख म्लान पड़ जाते हैं ।। १४ ॥ जिनको यह पेटरूपी सर्प डस लेता है अर्थात् जब पेटमें अन्न नहीं पहुंचता तो मनुष्योंके शरीर शिथिल हो जाते हैं, दृष्टि घूमने लगती है, सिरमें चक्कर आ जाता है। बुद्धि नष्ट हो जाती है। और उन्हें मूर्छा आ जाती है ॥ १५ ॥ उदररूपी ईश्वरसे सताया हुआ मनुष्य उत्तमकुलमें जन्म लेकर भी नीच लोगोंकी सेवा करता है। और नीच वचन बोलता है ॥ १६॥ इस पेट
१ स om. सीव्यति । २ स चिनोति, विनोति, पचनोति। ३ स जठरानिलबद्धिते देहे । ४ स तनुगर्व । ५ स भय। ६ स 'कुमुदोध्व', कुमुदोध ,. "कुमुदोष । ७ स दिनेसा । ८ स के न, किं नः । ९ स वदति न ।