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________________ ३२ ] सिद्धान्तसार दीपक इन्द्रक का विस्तार मनुष्य क्षेत्र सहश ( ४५००००० योजन ) है और अन्तिम इन्द्रक का विस्तार जम्बूद्वीप सदश ( एक लाख योजन ) है । इन दोनों का शोधन ( घटाने ) करने पर ( ४५०००००१०००००)=४४००००० योजन अवशेष रहते हैं. इनको एक क्रम (४६-१-४८ ) इन्द्रकों के प्रमाण से भाजित करने पर (४४००००० ४८ )=६१६६६ योजन प्रत्येक इन्द्रक का हानि चय होता है। इस हानि चय को उत्तरोत्तर घटाते हुए भिन्न भिन्न इन्द्रक बिलों का विस्तार प्राप्त कर लेना चाहिए। अथ सप्तनरकेषु संख्यातासंख्यातयोजन विस्तृतबिलानां पृथग रूपेण संख्या प्रोच्यते : रलप्रभायां बिलानि षट् लक्षाणि संख्येययोजन विस्ताराणि, चतुविशतिलक्षारिण असंख्येययोजन विस्ताराणि । शर्करापृथिव्यां पञ्चलक्षाणि संख्या व्यासानि, विशतिलक्षाणि असंख्यात विस्ताराणि च । बालुकायां त्रिलक्षारिश संख्ययोजन विस्ताराणि, द्वादशलक्षाणि असंख्ययोजनविस्तारारिण। पङ्कप्रभायां द्विलक्षसंख्य व्यासानि, अष्टलक्षाण्यसंख्यातयोजन ग्यासानि। धूमप्रभायां षष्टि सहस्राणि संख्य विस्तृतविलानि, द्विलक्षचत्वारिंशत्सहस्राणि असंख्य विस्तृतविलानि । तमःप्रभायां एकोनविंशतिसहस्रनवशतनवनवति प्रमाणानि संख्य व्यासविलानि, एकोनाशीतिसहस्रनवशत षण्णवति प्रमारिए असंख्यव्यासविलानि । महातमः प्रभायां एक बिलं संस्येय योजनविस्तृतं, चत्वारि बिलानि असंख्ययोजन विस्तृतानि । एवं सर्वारण्येकत्रीकृतानि बिलानि सप्तभूमिषु षोडशलक्षशीति सहस्रारिए संख्यात विस्ताराणि भवन्ति, सप्तषष्टिलक्षविशतिसहस्राणि-असंख्यातविस्तराणि भवन्ति च । विशेषा-उपयुक्त गद्य भाग में प्रत्येक नरक के संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले बिलों की संख्या भिन्न भिन्न दर्शाई गई है, जिसका सम्पूर्ण अर्थ निम्नाङ्कित तालिका में निहित किया जा रहा है। इन संख्यात असंख्यात योजन विस्तार वाले विलों की संख्या प्राप्त करने का विधान इसी अध्याय के ४६-४७ श्लोक में बतलाया गया है ।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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