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द्वितीय अधिकार
[२७ पौर ५ तमिश्र नामक ये पांच पटल पञ्चम धूमप्रभा पृथियो में हैं। (१) हिम, (२) मदंक और (३) लल्लक ये तीन पटल तमः प्रभा पृथिवी में हैं तथा अवधिस्थान नाम का एक पटल सप्तम महातमः पृथिवी में है। ये सम्पूर्ण पटल ४६ हैं और इनसे सम्बन्धित इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकोणक बिल भी होते हैं ।।२८-३८॥ अब सात श्लोकों द्वारा सातों नरकों के इन्द्रादिक बिलों का निरूपण करते हैं:
सर्वेषां प्रतराणां स्युमध्यभागेषु चेन्द्रकाः । श्रेणीबद्धाः क्रमात पडत्याकारणव दिगष्टसू ॥३६।। श्रेणीबद्धाश्चतुदिक्षु प्रथमे पटले पृथक् । भवन्त्येकोनपञ्चाशत् प्रत्येकं चतुरस्रकाः ।।४०॥ अस्यादि पटलस्यापि चतुर्विदिक्षुसंस्थिताः । श्रेणीबद्धाश्च सन्स्पष्टचत्वारिंशत् पृयक् पृथक् ॥४१॥ ततः क्रमाद् द्वितीयादि पटलानां दिगष्टम् । अष्टावकैक रूपेण श्रेणीबद्धाः पृथक् पृथक् ।।४२॥ हीयन्ते तावदेवान्तिमे यावत् पटले स्फुटम् । श्रेणीबद्धा हि चत्वारस्तिष्ठन्ति तुर्यदिग्गताः ॥४३॥ सन्ति प्रकीर्णकाः सर्वे श्रेणीबद्धान्तराष्टसु । इन्द्रकश्रेणिसम्बन्धहीनाः पृथक् पृथक् स्थिताः ॥४४॥ प्रकीर्णका न सप्तभ्यां श्रेणीबद्धा महत्तराः।
स्युश्चतुर्दिा चत्वारो मध्ये केन्द्रको भवेत् ॥४५॥ अर्थ:--सम्पुर्ण पटलों के मध्यभाग में एक एक इन्द्रक बिल होता है, और इस इन्द्रक की आठों दिशाओं में क्रम से पंक्ति के प्राकार श्रेणीबद्ध बिल होते हैं। प्रथम पृथ्वी के प्रथम पटल ( सीमन्त नामक इन्द्रक बिल ) की चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में चतुष्कोण प्राकार को धारण करने वाले ४६, ४६ श्रेणीबद्ध बिल हैं और इसी पटल' के इसी इन्द्रक को चारों विदिशाओं में से प्रत्येक विदिशा में पृथक् पृथक ४८, ४८ श्रेणीबद्ध बिल हैं। इसी प्रकार कम से द्वितीयादि पटलों की आठों दिशा विदिशाओं में से प्रत्येक दिशा विदिशा में ये एक एक कम होते हुए एक पटल में एक साथ पाठ श्रेणीबद्ध घट जाते हैं, और ये इस प्रकार तब तक घटते जाते हैं जब तक कि अवधिस्थान नाम के अन्तिम इन्द्रक की चारों दिशाओं में चार श्रेणीबद्ध बिल रह जाते हैं। [ छह नरकों में ] श्रेणीबद्ध बिलों के ग्राउ अन्तरालों में इन्द्रक और श्रेणीबद्ध बिलों के सम्बन्ध से रहित