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________________ दूसरा अधिकार अधिकार की आदि में मङ्गलाचरण करते हैं : लोकनाडिगतान पञ्च महतः परमेष्ठिनः । स्वगंमुक्तिकरान् वन्दे सतां श्वभ्रनिवारकान् ॥१॥ अर्थ:-लोकनाही में स्थित, स्वर्ग और मुक्ति सुखों को करने-देने वाले तथा सज्जन पुरुषों का नरकगति से निवारण करने वाले परमोत्कृष्ट पञ्चपरमेष्ठियों को मैं नमस्कार करता हूँ ।।१।। वक्ष्यमाण अधोलोक के वर्णन का हेतु और प्रतिज्ञा : अथ वैराग्यसंसिद्धयं पाप्यङ्गिभीतिहेतवे। अधोलोकं प्रवक्ष्येऽहं लोकस्य श्वभ्रवर्णनेः ॥२॥ अर्थ:--वैराग्य की प्राप्ति के लिए और लोकके पापी जीवों को भय उत्पन्न कराने के लिए अब मैं नरकों के वर्णन द्वारा अधोलोक को कहूँगा । अर्थात् नरकों के दुःखों को सुनकर-पढ़कर वैराग्य की प्राप्ति हो और पापों से भय हो इसलिये नरकों के कथन द्वारा प्राचार्य अधोलोक का विस्तृत वर्णन करेंगे। अधोलोक में सातों पृथिवियों की स्थिति एवं नाम तीन इलोकों द्वारा कहते हैं: महामेरोरधोभागे रज्ज्वैकान्तरस्थिताः । स्पृशन्स्यः सर्वलोकान्तं सप्लेमाः श्यभ्रभूमयः ।।३।। प्राधा रत्नप्रभाशर्कराप्रभाबालुकाप्रभा। पङ्कधूमप्रभाभिख्ये तमोमहातमःप्रभे ।।४।। इतिप्रभोस्थनामानि पृथ्वीनां श्रीजिना विदुः । तथा पर्यायनामानीमानि ज्ञेयानि कोविवेः॥।॥ अर्थ:-सुदर्शन मेरु के अधोभाग में सात नरक भूमियाँ लोक के अन्त को स्पर्श करती हुई एक एक राजू के अन्तराल से स्थित हैं। इनमें १ रत्नप्रभा, २ शर्कराप्रभा, ३ बालुका प्रभा, ४ पङ्कप्रभा ५ धूमप्रभा, ६ तमःप्रभा और ७ महातमःप्रभा नाम वाली पृथिवियाँ हैं, अपनी अपनी प्रभा से
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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