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________________ २० ] सिद्धान्तसार दीपक को स्पर्श करने के लिए जो श्रात्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना है वह मारणान्तिक समुद्घात है। १३ वे गुणस्थान के अन्त में श्रायु कर्म के अतिरिक्त शेष तीन श्रघातिया कर्मों की स्थिति क्षय के लिए केवली के ( दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूर्ण श्राकार से ) श्रात्म प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना केवली समुद्घात है । इति बहुविधरूपां लोकनाड समग्रां, जिनगणधर देव: प्रोवितामङ्गपूर्वे । शिवगतिसुखकामादचावबुद्धद्याश्रयध्वं सकलचररणयोर्ग र्लोक मूर्ध्वस्थमोक्षम् ॥ ९४ ॥ अर्थ :- हे मोक्ष सुख के इच्छुक ! श्रेष्ठ गणधरदेवों के द्वारा श्रङ्गपूर्व में कही गई अनेक स्वरूप वाली सम्पूर्ण लोकनाड़ी को जान कर सकल चारित्र के योग द्वारा लोक के अग्रभाग में स्थित मोक्ष का आश्रय करो ||४|| अधिकार मत अन्तिम मङ्गलाचरण : निर्वाणमनन्तसौख्यजनकं ये सिद्धनाथाः श्रितास्तीर्थेशाश्च तपोवरैः सुचरन्तु द्र तं प्रोद्यताः । पञ्चाचार परायणाश्च गणिनो ये पाठकाः साधवस्तेषां पादसरोरुहान् स्वशिरसा तद्भूतये नौम्यहम् ॥६५॥ अर्थ :- जो सिद्ध परमेष्ठी और तीर्थङ्कर देव अनन्त सुख को उत्पन्न करने वाले निर्वाण का आश्रय ले चुके हैं, तथा उत्कट तप और सम्यक् चारित्र के द्वारा पञ्चाचार परायण आचार्य परमेष्ठी, उपाध्याय एवं साधुगरण शीघ्र हो मोक्ष में जाने के लिये उद्यमवान् हो रहे हैं ऐसे उन पञ्चपरमेष्ठियों के चरण कमलों को मैं मोक्ष की विभूति के लिये शिर से नमस्कार करता हूँ ||५|| इस प्रकार श्री सकल कीर्ति भट्टारक द्वारा विरचित महाग्रन्थ सिद्धान्तसारदीपक में लोकनाडी का वर्णन करने वाला प्रथम अधिकार सम्पूर्ण हुआ
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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