SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 646
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०० ] सिद्धान्तसार दीपक सप्ताहोरात्र जातानां मेष बालकजन्मिनाम् । रोमखण्डैरखण्डैस्तं पूरयेत्सूक्ष्मखण्डितैः ॥४२॥ एकैकं रोमखण्डं तद्वर्षाणां च शते शते । गते सति ततः कूपान्निः सायं विचक्षणः ॥ ४३ ॥ यदा स जायते रिक्तः कालेन महता तदा । सरकालस्य प्रमाणं यत्स पन्यो व्यावहारिकः ॥४४॥ चतुरेकत्रिचत्वारः पञ्चद्विषट् त्रिशून्यकाः । त्रिशून्याष्टद्विशून्यं त्र्येकसप्तसप्त सप्तकाः ।।४५|| चतुर्नवाचक द्वयाङ्कक नवद्वयाः । सप्तविंशति रेसेऽङ्काः शून्यान्यष्टादशास्फुटम् ॥ ४६ ॥ प्रमोभिः पश्चचत्वारिंशवङ्कः श्रोजिनाधिपैः । तद् व्यवहारपल्यस्य रोमारणां गणनोबिता ॥४७॥ अर्थ::- पल्य की सिद्धि के लिए एक योजन ( चार प्रमाण कोल ) चौड़ा और एक योजन गहरा एक गोल गड्डा खोदना चाहिए ॥४१॥ तथा उसे ( उत्तम भोगभूमि में ) सात दिन रात के भेड़-बच्चों के रोमों को ग्रहण कर जिसका दूसरा खण्ड न हो सके ऐसे अखण्ड और सूक्ष्म रोम खण्डों के द्वारा उस गड्ढे को भरे तथा प्रत्येक सौ वर्ष व्यतीत होने पर एक-एक रोम खण्ड निकाले इस प्रकार सौ सौ वर्ष में एक-एक रोम निकालते हुए जितने काल में वह गड्ढा खाली हो जाय उतने काल ( के समयों की संख्या } को विद्वानों ने व्यवहार पल्य कहा है ।।४२-४४ ।। ४१३४५२६३०३०८२०३ १७७७४६५१२१६२०००००००००००००००००० इस प्रकार २७ अंकों को १८ शून्यों से युक्त करने पर ४५ प्रङ्क प्रमाण व्यवहार पत्य के रोमों की संख्या श्री जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कही गई है। अर्थात् प्रत्येक सौ वर्ष बाद एक एक रोम के निकाले जाने पर जितने काल में समस्त रोम समाप्त हों, उतने काल के समय ही व्यवहार पत्य के समयों की संख्या है ।।४६-४७।। अब उद्धार पल्य और द्वीप समुद्रों का प्रमाण कहते हैं: पसंख्यकोटिवर्षाणां समये खिताश्च ते । रोमांशावधिताः सर्वे भवन्ति संख्ययज्जिताः ॥ ४८ ॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy