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प्रथम अधिकार
वियन भवन्ति रज्जवोऽखिलाः । पिण्डीकृता घनाकारेणाधोलोकस्य निश्चितम् ॥६॥ अर्थ:-इस लोक के अधोभाग में ध्यास सात राजू और मध्यभाग ( मध्यलोक ) पर व्यास एक राजू प्रमाण है। इन दोनों को जोड़ देने से (७+१) पाठ राजू होता है और इसे आधा करने पर (८:२) चार राजू प्राप्त होते हैं। (अधोलोक से मध्यलोक तक की ऊँचाई सात राज है अतः) इन चार को सात से गुरिणत करने पर (४४७)=२८ वर्गराजू अधोलोक का क्षेत्रफल उत्पन्न हो जाता है और इस २८ वर्ग राजू क्षेत्रफल को ( दक्षिणोत्तर मोटाई ) सात राजू से मुरिणत कर देने पर सम्पूर्ण अधोलोक का धनफल (२०४७)== १६६ धनराजू प्रमाण प्राप्त होता है। अर्थात् अधोलोक का क्षेत्रफल २८ वर्ग राजू और धनफल १६६ घनराजू प्रमाण है ।। ६५-६८|| ऊ लोक का क्षेत्रफल एवं घनफल पाठ श्लोकों द्वारा कहते हैं :
ब्रह्मकल्पेऽस्थ विस्तारः पञ्चरज्जप्रमाणकः । मध्यभागे च रज्ज्वेकस्तयोमलापके कृते ॥६६॥ षड्रज्जवो भवेयुश्च तासामों कृते सति । गृह्यन्ते रज्जवस्तिस्रः सप्तभिगुणिताश्च ताः ।।७।। एकविंशतिसंख्याता जायन्ते रज्जवः पुनः । ताः सर्वा वगिताः सार्वत्रिकर्भवन्ति पिण्डिताः ॥७१॥ रज्जयोऽप्ययभागेऽस्य ब्रह्मलोकान्तमञ्जसा ।
घनाकारेण सर्वत्र सार्वत्रिसप्तति प्रमाः ॥७२।। अर्थः--इस लोक का विस्तार ब्रह्मकल्प पर पांच राजू और मध्यलोक पर एक राजू प्रमित है । इन दोनों को जोड़ देने से (५+१)=६ राजू होते हैं और उन्हें प्राधा करने पर (६२)-३ राजू प्राप्त होते हैं । मध्यलोक से ब्रह्मलोक की ऊँचाई ३३ राजू है अतः तीन को ३३ राजू ऊँचाई से गुणित करने पर (२x६)=२. वर्गराजू मध्यलोक से ब्रह्मलोक पर्यन्त अर्थात् अर्घ ऊर्ध्वलोक का क्षेत्रफल प्राप्त हुना। इसके उत्तरदक्षिण सात राजू मोटाई से मुणित कर देने पर ब्रह्मलोक पर्यन्त ऊर्ध्व लोक का घनफल (३४६)="" अर्थात् ७३३ घनराजू प्रमाण प्राप्त होता है ॥६६-७२॥
नोट-लोक में तीन को पहिले सात से गुणित करके २१ प्राप्त किये गये हैं, फिर ३३ राज ऊंचाई से गुणित किया गया है, इस प्रक्रिया से धनफल तो प्राप्त हो जाता है किन्तु क्षेत्रफल प्राप्त नहीं होता क्योंकि क्षेत्रफल निकालने का नियम है "मुखभूमिजोगदलेपदहदे" अर्थात् मुख और भूमि के योगफल को प्राधा करके ऊँचाई से मुरिणत करने पर क्षेत्रफल प्राप्त होता है। इसी नियम को