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________________ १४ ] सिद्धान्तसार दीपक अर्थ:--ब्रह्मलोक से ऊपर लोक के मस्तक पर्यन्त जितना उत्सेध पागम में कहा है वह साहे. तीन राजू प्रमाण है। अर्थात् ब्रह्मलोक से लोक के अन्त पर्यन्त ऊवलोक की ऊँचाई ३३ राजु प्रमाण है ।।६०॥ अस्थायामोऽस्ति सर्वत्र दक्षिणोत्तरभागयो। सप्तरज्जुप्रमाणः किलामूलमस्तकान्तयोः ।।६१॥ अर्थ:-इस लोक के दक्षिणोत्तर भाग का प्रादि से अन्त पर्यन्त अर्थात् नीचे से ऊपर तक का | अायाम (दीर्घता) सर्वत्र सात राजू प्रमाण है। अर्थात् लोक दक्षिणोत्तर भाग में सर्वत्र सात राजू | प्रमाण है। ६१। पूर्वापरेण लोकस्य ह्रासवृद्धोस्मृते बुधः । मूलेऽस्य विस्तृति ज्ञेया सप्तरज्जुप्रमाखिला ॥६२।। क्रमहान्या सप्तोऽप्यस्य मध्यलोके जिनागमे । रज्ज्वेको व्यास आम्नातो गणाधीशंगणान् प्रति ॥६३।। ततश्च क्रमवृधास्य ब्रह्मलोकेऽस्ति विस्तृतिः । पञ्चरज्जुप्रमामूनि रज्ज्वेका कमहानितः ॥६४॥ अर्थः–ज्ञानियों के द्वारा लोक के पूर्व-पश्चिम भाग का विस्तार हानिवृद्धि रूप माना गया है। लोक के मूल में पूर्व पश्चिम विस्तार सात राजू प्रमाण है । इसके बाद क्रम से हानि होते होते मध्यलोक पर पूर्वपश्चिम विस्तार जिनागम में जिनेन्द्रों के द्वारा मुनिसमूह के लिए एक राजू प्रमारण कहा है । मध्यलोक के ऊपर कम से शुद्धि होते होते ब्रह्मलोक पर लोक का विस्तार पांच राजू और वहां से क्रमशः हानि होते होते लोक के मस्तक का विस्तार एक राजू प्रमाण है ।।६२, ६३, ६४॥ अब चार श्लोकों द्वारा अधोलोक का क्षेत्रफल एवं वनफल कहते हैं : अधोभागेऽस्य लोकस्य व्यासेन सप्तरज्जबः । रज्ज्वेकामध्यभागे च तयोः पिण्डीकृते सति ॥६५॥ जायन्ते रज्जवोऽप्यष्टौ तासामों कृते पुनः । चतस्रो रज्जवः स्युस्ता गुणिताः सप्तरज्जुभिः ॥६६॥ अष्टाविंशतिसंख्याश्वोत्पद्मन्से रज्जवः पुनः । अष्टाविंशतिसंख्यास्ता बगिताः सप्तरज्जुभिः ॥६७॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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