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________________ दक्षिण परिषद देवो २४००० अरसको परिषर पंचदशोऽधिकारः और 本 २० योजन पश्चिम मन अंगों के २००० संनायक के आसन 000 & प बरुण सौधर्मेन्द्र कौ आसन सोल अङ्गरक्षकी के आसन सामाजिक टेके के ४२००० अमर दाराव्य अङ्गरक्षको ४००० आसन 09(घ) सामादिक देवो के भजन ईशान उत्तर १०० योजन अब प्रस्थान मण्डप के श्रम स्थित मानस्तम्भ का स्वरूप प्रमाण एवं उस पर स्थित करण्डों का प्रवस्थान आदि कहते हैं:-- तस्या रत्नपीठस्थो मानस्तम्भोऽस्ति मानहृत् । त्रिंशद्योजनोत्तुङ्गो योजनव्यास ऊजितः ॥ १८० ॥ वज्रकायः स्फुरत्कान्तिर्महाध्वजविभूषितः । मस्तके जिनबिम्बादयः स्वांशूदद्योतित दिग्मुखः ॥। १८१|| itiesविस्तीर्ण कोटिद्वादश राजितः । प्रोभागे विहायास्य क्रोशोन योजनानि षट् ॥ १८२ ॥ [ ve ऊर्ध्वभागे परित्यज्य कोशाप्रयोजनानि षट् । तिष्ठन्ति मणिमञ्जूषा रत्नरज्जु विलम्बिता: ॥ १८३ ॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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