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________________ ५२४ ] सिद्धान्तसार दीपक प्रानतेन्द्रादयः शेषाइयत्वारा पटलेंन्तिमे | दक्षिणोत्तरविक् श्रेण्योः सन्ति षष्ठे विमानके ॥६॥ अच्युतस्वर्गपर्यन्तमिन्द्राः सन्ति पृथक् पृथक् । अहमिन्द्रस्ततोऽप्यूर्वे सर्वेन वेयकादिषु ।।१००॥ अर्थ:--प्रथम युगल के प्रभ नामक अन्तिम पटल की दक्षिण दिशा में स्थित १८ वें श्रेणीबद्ध विमान में सौधर्म इन्द्र रहता है, और इसी पटल की उत्तर दिशा गस १८ वें श्रेणीबद्ध विमान में ईशान इन्द्र निवास करता है ।।६३॥ द्वितीय युगल के चक्र नामक अन्तिम पटल की दक्षिण दिशा गत १६ वें श्रेणीबद्ध में सनत्कुमार इन्द्र और इसी पटल को उत्तर दिशा गत १६ वें श्रेणीबद्ध में माहेन्द्र इन्द्र निवास करता है ।।१४।। तृतीय युगल के मझोलर नाम अन्तिम पटल को दक्षिण दिशा गत १४ ३ श्रेणीबद्ध विमान में ब्रह्मोत्तर नाम इन्द्र का अवस्थान है ।।६५|| चतुर्थ युगल के लान्तव नामक द्वितीय ( अन्तिम ) पटल की दक्षिण दिशागत १२ वें श्रेणीबद्ध विमान में लान्तव इन्द्र अपनी देवांगनाओं और अन्य देवों से वेष्ठित लान्तव इन्द्र निरन्तर निवास करता है ॥९६|| पंचम युगल के शुक्र नामक पटल की दक्षिण दिशागत १० वें श्रेणीबद्ध विमान में अन्य देव गणों के साथ शुक्र इन्द्र निवास करता है ।।१७।। षष्ठ युगल के शतार पटल की दक्षिण दिशागत ८ वे श्रेणीबद्ध विमान में अनेक देव देवियों के साथ इतार इन्द्र निवास करता है ।।१८।। सप्तम और अष्टम युगल के मानत पटल की दक्षिण दिशागत ६ ३ श्रेणीबद्ध में पानत इन्द्र और उत्तर दिशागत ६ वें श्रेणीबद्ध में प्रारणत इन्द्र रहता है, तथा प्रारण पटल की दक्षिण दिशागत ६ ३ श्रेणीबद्ध में प्रारण इन्द्र और इसी पटल की उत्तर दिशागत ६ वै श्रेणीबद्ध विमान में अच्युत इन्द्र निवास करता है ।।६६॥ अच्युत स्वर्ग पर्यन्त ही पृथक् पृथक् इन्द्र हैं। इन फल्पों के ऊपर प्रेयेयक प्रादि सर्व विमानों में सभी अहमिन्द्र हैं ॥१०॥ अब सौधर्मादि देवों के मुकुट चिन्हों का निरूपण करते हैं:--- अधुना मौलिचिह्नानि प्रवक्ष्यामि पृथक् पृथक् । सौधर्ममुख्यकम्पस्येन्द्रादिसर्वसुधाभुजाम् ॥११॥ सौधर्मे मुकुटे चिन्हं बराहोऽस्ति विधोकसाम् । ऐशाने मकरो मौलि चिन्हं च विस्फुरत्प्रभम् ॥१०२॥ सनकमारनाक स्यान्महिषो मौलिलाञ्छनम् । माहेन्द्रऽस्ति शकादीनां मत्स्यचिन्हं च शेखरे ॥१०३॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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