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________________ पंचदशोऽधिकार: [५१३ ' पब भेणीबद्ध विमानों के प्रवस्थान का स्वरूप कहते हैं:-- प्रायेन्द्रकस्य विद्यन्ते चतुदिक्षु विमानकाः । श्रेणीबद्धा द्विषष्टिस्तु महान्तोऽनुक्रमात् पृथक् ॥६१॥ प्राधेन्द्रकाच्चतुर्दिक्षु सर्वोध्यपटलेष्वपि । श्रेणीबद्धाः प्रहीयन्ते चतुश्चतुप्रमाः क्रमात् ॥६२।। यावच्चानुदिशाभिस्ये पटले दिक्चतुष्टये । श्रेणीबद्धा हि तिष्ठन्ति प्रान्स्याश्चत्वारइन्द्रका ॥६३।। अर्थ:-प्रथम ऋतु इन्द्रक विमान की चारों दिशाओं में अनुक्रम से पृथक पृथक् बासठ-बासठ श्रेणीबद्ध विमान अवस्थित हैं । इसके ऊपर द्वितोयादि पटलों के इन्द्रकों को चारों दिशाओं में क्रम से प्रथम इन्द्रक के श्रेणीबद्धों के प्रमाण से चार-चार श्रेणीबद्ध तब तक हीन हीन होते जाते हैं, जब तक अन्तिम पटल की प्राप्ति नहीं हो जाती । इसीलिये अनुदिश ( और अनुत्तर) इन्द्रक की चारों दिशाओं में (प्रत्येक दिशा में एक एक ) चार ही श्रेणीबद्ध विमान हैं 1३६१-६३।। प्रत्येक स्वर्ग के श्रेणीबद्ध विमानों का प्रमाण निम्न प्रकार है:-- 357x३=४५; (१८६-४५) ४३१=४३७१ सौधर्म स्वर्ग के श्रेणी का प्रमाण है। 125x१=१५; (६२-१५)४३१= १४५७ ऐशान स्वर्ग के श्रेणी का प्रमाण है। "'x=8; (६३-६)x७=५५८ सानत्कुमार स्वर्ग के श्रेणीबद्धों का प्रमाण है। ४१=३; (३१-३)x७=१९६ माहेन्द्र , , , , *'४४ - ६; (१६–६) ४४-३६० ब्रह्मब्रह्मोत्तर , . , Os'x४-२; (२०-२)४२-१५६ लान्तव कापिष्ठ , '४४=0; (७२-०}x१-७२ शुक्रमहाशुक्र । 'F' ४४=="; (६८-०) x १ = ६८ शतार सह .. Fx४= १०; (६४-१०) x ६- ३२४ मानतादि ४ . . .
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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