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________________ पंचदशोऽधिकारः स्वर्गाणामुपरि स्युश्वाद्याधोरां देयकास्त्रयः । तेषामुपरिसन्त्येव मध्यग्रं वेयकास्त्रयः ॥ १३॥ एषामुपरि तिष्ठन्ति चोर्ध्वग्रं वेयास्त्रयः । अमीषामुपरि स्यामच नवानुविनामकम् || १४ ॥ तस्य सन्ति चतुर्दिक्षु चश्वारश्च विमानकाः । विदिक्षु तेsपितान्तो मध्ये हच कं विमानकम् ।।१५।। तस्योपरि च पञ्चानुत्तराख्यं पटलं भवेत् । तच्चतुर्दिक्षु चत्वारि विमानानि भवन्ति वे ||१६| मध्ये सर्वार्थसिद्धघाख्यं स्याद्विमानं च्युतोपमम् । ततो मुक्तिशिलाविच्या गत्वा द्वादशयोजनान् ॥१७॥ [ ५०५ अर्थ :- दक्षिण और उत्तर दिशाओं में षोडश स्वर्ग युग्म रूप से ऊपर ऊपर अवस्थित हैं, अर्थात् एक युगल के ऊपर दूसरा, दूसरे के ऊपर तीसरा इत्यादि ||१२|| सोलह स्वर्गो के ऊपर तीन अधायकों की (एक के ऊपर एक ) अवस्थिति है। इनके ऊपर तीन मध्यम ग्रैवेयक और उनके ऊपर तीन ऊर्ध्व वेयक स्थित हैं। इन ग्रंवेयकों के ऊपर चार दिशाओंों में चार, चार विदिशानों में चार और एक मध्य में इस प्रकार नव अनुदिशों की अवस्थिति है ॥१३ - ११ नव अनुदिशों के ऊपर पांच अनुत्तर विमान हैं, जो चार दिशाओं में चार हैं और मध्य में उपमा रहित सवार्थसिद्धि नामक विमान अवस्थित है। सवार्थ सिद्धि विमान से बारह योजन ऊपर जाकर दिव्य रूप वाली सिद्धशिला अवस्थित है ।।१६-१७ ॥ अब मेरु तल से कल्प और करुणातीत विमानों के अवस्थान का प्रमाण कहते हैं: मेरोस्तलाच साधेंका रज्जुपर्यन्तमादिमों । स्यातां स्वर्गौ ततोऽन्यौ द्वौ सार्धरज्ज्वन्तमञ्जसा ||१८|| अर्धा रज्जुपर्यन्तं शेषषट्स्वर्गयुग्मकाः । प्रत्येकं स्युः पृथग्भूतास्ततो वेयकादयः ॥ १६ ॥ सर्वार्थसिद्धिमोक्षान्ता एक रज्ज्वन्तमाश्रिताः इस्यू लोककल्पाद्याः स्युः सप्तरज्जुमध्यमाः ॥ २० ॥ अर्थ ः—मेश्तल से डेढ राजू में सौधर्मेशान स्वर्ग है, इसके ऊपर डेढ़ राजू में सानत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग हैं, इसके ऊपर ऊपर प्रत्येक अर्ध अर्ध राजू की ऊँचाई में क्रम से अन्य छह युगल अवस्थित
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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