SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 549
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FFEF MITTER [ ४४ SHARELATER UIt fr : : सा : :: :: :: ::TR FIFTHEFTE FTE: :: T.. .:. ; THE ARE HIRसहलानारामविलक्षथानमालपात् ।...TET Ki योनितिसंयुक्ताल बन्द, अन्यानरामरे-११ yie Tre is 10-21 प्राय: मनुष्यों श्री देवों द्वारा पदनीक बौरासी लाख सलाम हजार तेईस जिनालयों को मैं (सक्वकीयांचाई) नमस्कार करता है Hasir FIF fig Fr प्रतिज्ञा : 13 Herry RTE AREpiii प्रयोलोकभागात स्वर्मन, कसका हिस्सा इन्द्रादिनाकिना अतिरितिबल्या विज्ञान को अर्थ:-अब ऊर्ध्वलोक में स्थित सीप कि वर्ग मोरान स्थिति प्रादि को तथा इन्द्रादिक देवों की विभूति एवं हिपनि प्रादि को कहता हूँ । Efire अब सोलह स्वामें के नाम और काममाया कहते हैं - सौधर्मशानकन्यौ हौदक्षिणीतरयो स्थिती सनत्कुमारमाहेमो ब्राह्मनालाल बह्रयो । ... स्वगौ लास्तरकापिष्टौ दक्षिणोत्तरविकृषितो _iftin को प. शुक्रमहाशुको स्मरूपयवस्थितो:017 !!:: । T.fi... " दो शतारमहलामावालतमामासाभियो ::::15---। :: :: :: आरसाच्यातनामानौ चैतेश्वरचा पोरस HIR FIF , अर्थ:--सौधर्म और ऐशान कल्प, क्रमशः दक्षिस और उत्तर में प्रस्त , सनत्कार माहेन्द्र, ब्रह्मा-ब्रह्मोत्तर तथा लपन्नव और कापिष्ट ये स्वर्ग भी दिया जाना विमानों के माश्रित अवस्थित है । शुक्र और महाशुक्र ये युग्म रूप अवस्थित हैं ।। ३-४॥ शतार सहवार, प्रानत-प्राएत तथा प्रारण और अच्युत ये भी एक के बाद एक युग्म रूप से अवस्थित है, इस प्रकार से सोलह स्वर्ग ऊध्वं. REETITIHAR सालह स्वग ऊच. लोक में अमित
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy