SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 548
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०२ ] तिसार दीपक अर्थी भव्यजन श्रात्म सिद्धि के लिये प्रतिदिन श्रादर पूर्वक पढ़ें। अर्थात् प्रतिदिन इसका स्वाध्याय करना चाहिये ।। १३४५ अधिकारान्त ङ्गलाचरण :-- ज्योतिर्भावन मौमनाकभवनेष्वेव त्रिलोके च ये । श्रीमच्चैत्यगृहा नृदेवमहिता नित्येतराः पुण्यदाः । श्रोतीर्थेश्वर मूर्तयोऽति सुभगा याः श्री जिनाद्याश्च ये । तान् सर्वान् परमेष्ठिनः सुविधिना वन्देऽर्चयेऽर्चाश्च ताः ॥ १३५ ॥ इति श्रीसिद्धांतसारदीपकमहाग्रन्थे भट्टारक श्रीसकलको तिविरचिते अनो नाम चतुर्दशोऽधिकारः ॥ ज्योतिर्लोक अर्थ :- भवनवासी, व्यन्तरवासी, ज्योतिषी और कल्पवासी देवों के भवनों में तथा तीन लोक 'में मनुष्य और देवों द्वारा पूजित, पुण्य प्रदान करने वाले अकृत्रिम और कृत्रिम जिन चैत्यालयों की, अत्यन्त सुभग तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की तथा साक्षात् जिनेन्द्र देव आदि पंच परमेष्ठियों की और उन सब प्रतिभाओं की मैं विधि पूर्वक पूजन करता हूँ, बन्दना करता हूँ और अर्चना करता हूँ ।। १३५ ।। इस प्रकार भट्टारक सकलकीर्ति विरचित सिद्धान्तसार दीपक नाम महाग्रन्थ में ज्योतिर्लोक का प्ररूपण करने वाला चौदहवाँ अधिकार समाप्त ॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy