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चतुर्दशोऽधिका
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अब जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट नक्षत्रों के नाम एवं संख्या कहते हैं :-- पुनर्वसु विशाखारोहिणी चोत्तरफाल्गुनी । उत्तराषाढसंज्ञं चोचरभाद्रपदाह्वयम् ||१०८ ||
एतानि षड् जघन्यानि नक्षत्राणि भवन्त्यपि । श्राश्लेषा मरणो चार्द्रा स्वातिज्येष्ठाभिधानकम् ॥ १०६ ॥ ततः शतभिषैतानि षडुतमानि सन्ति च ।
शेष षोडशनक्षत्राणि मध्यमानि निश्चितम् ॥ ११० ॥
अर्थ:- पुनर्वसु, विशाखा, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा और उत्तराभाद्रपद ये ६ नक्षत्र जघन्य संज्ञक हैं । प्राश्लेषा, भरणी, श्रार्द्रा, स्वाति, उमेष्ठा और शतभिषक् नाम वाले ये छह नक्षत्र उत्कृष्ट संज्ञक हैं, तथा शेष अश्वनी, कृतिका, मृगशीर्षा, पुष्य, मघा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, मूत्र, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती नाम वाले ये पन्द्रह नक्षत्र मध्यम संज्ञक हैं ।। १०८ - ११० ॥
Mr कृतिका प्रावि ताराम्रों के प्राकार विशेष कहते हैं :--
यञ्जनं शकटाकारं मृगशीर्षा हि दीपिका । तोरणाभं सितच्छत्रं वल्मीकसन्निभं तथा ॥ १११ ॥ . रेखा गोमूत्रजा हारो युगहस्तोऽम्बुजं ततः । परिखिकाहारो वीणाशृङ्ग हि वृश्चिकः ||११२ ॥ भग्नवापीनिभं सिंहों गजकुम्भस्यलोपमः । सृवङ्गार्भ पतत्पक्षी सेनेभ- गात्रसञ्चयः ॥ ११३॥
नौ: पाषाणस्तथा चुन्ली चेत्याकारा इमे क्रमात् । प्रोदिताः कृत्तिकादीनां नक्षत्राणां जिनेश्वरः ॥११४॥
अर्थः- कृतिका आदि नक्षत्रों की ताराएं क्रमश: बीजना सहश, गाड़ी की उद्धिका सदृश, मृग के शिर सदश, दीपक, तोरण. छत्र वल्मीक ( बांबी ) गोमूत्र, हार, युग, हाथ, उत्पल ( नील कमल ), दीप, धोंकनी, वरहार, बीणाशृङ्ग, वृश्चिक ( विच्छु), नष्टत्रापी, सिंह, कुम्भ, गज कुम्भ, सुरज ( मृदङ्ग ), गिरते हुए पक्षी, सेना, हाथी के पूर्व शरीर, हाथी के उत्तर शरीर, नाव, पत्थर और चुल्हे के सदृश आकार वाली होती है ।। १११-११४||