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________________ ४९६ सिद्धान्तसार दीपक एकादशसहस्राणि स्वस्वताराहतानि च । स्मृतं परिजनस्येवं संख्यानं कृतिकाविषु ॥ १०७॥१ अर्थ :- कृतिका आदि २८ नक्षत्रों के ताराम्रों की संख्या क्रमशः छह, पाँच, तीन, एक, छह, तीन, छह, चार, दो, दो, पाँच, एक, एक, चार, छह, तीन, नौ, चार, चार, तीन तीन पाँच, एक सौ ग्यारह दो, दो, बत्तीस, पाँच और तीन है ।। १०४ १०६॥ एक हजार एक सौ ग्यारह को अपने अपने ताराओं के प्रमाण से गुरिणत करने पर कृतिका आदि नक्षत्रों के परिवार ताराम्रों का प्रमाण प्राप्त हो जाता है ।। १०७ ।। विशेषार्थ : -- ११११ को अपने अपने ताराओं के प्रमाण से गुणा करने पर परिवार ताराम्रों का प्रमाण प्राप्त होता है । जैसे :-- नक्षत्र परिवार ताराओं की संख्या मक्षत्र कृ० ११११×६ = ६६६६ मा पूर्वा शे० ११११४५ - ५५५५ फा० परिवार ताराओं की संख्या नक्षत्र मृग० | ११११४३३३३३ उफा ११११x२=२२२२ मार्द्रा | ११११×१ = ११११ हस्त ११११४५ ० ५५५५ पुत० ११११x६६६६६ चित्रा १११११ = ११११ पुष्य ११११४३-३३३३ स्वाति ११११४१ = ११११ आ० ११११x६६६६६ विश. ११११ x ४ = ४४४४ परिवार तारामों की संख्या नक्षत्र I ११११x४ = ४४४४ अनु० ११११x६ - ६६६६ घ नि० ११११४२२२२२ ज्येष्ठा ११११× ३ – ३३३३ प्रात परिवार ताराओं की संख्या ११११४५ - ५५५१ ११११४१११ १२३३२१ मूल ११११५९९९९९.पू. भा. ११११x२= २२२२ I पू. बा ११११ x ४ = ४४४४ उ.मा. ११११ x २ - २२२२ उषा ११११x४ - ४४४४ रेवती |११११४३२ = ३५५५२ मभि. | ११११× ३ ३३३३ ग्रश्वि. ११११५ – ५५५५ भव. ११११४३ = ३३३३ भरणी ११११ × ३ ३३३१ नोट :- इस प्रकार प्रत्येक नक्षत्र सम्बन्धी ताराओं का प्रमाण प्राप्त हो जाता है ।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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