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________________ मङ्गलाचरण : चतुर्दशोऽधिकारः ज्योतिर्देयविमानस्थासंख्यातश्रीजिनालयान् । जिनबिम्बान्वितान् बन्धे स्तुये नित्यान् शिवाय च ॥ १ ॥ :- ज्योतिर्देवों के विमानों में स्थित जो असंस्थात जिनालय हैं, उन जिनालयों में स्थित जिन प्रतिमाओं के समूह की मैं मोक्ष प्राप्ति के हेतु नित्य ही वन्दना करता हूँ और उनका स्तव करता है ॥१॥ अब ज्योतिषी देवों के भेदों का प्ररूपण करते हैं : चन्द्राः सूर्या ग्रहा नक्षत्राणि प्रकोरतारकाः । एते पञ्चविधाः प्रोक्ता ज्योतिष्कदेवतागणाः ॥ २ ॥ श्रर्थ:- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारा, इस प्रकार ज्योतिषदेवों के समूह पांच प्रकार के कहे गये हैं ॥२॥ अब तारा आदि ज्योतिर्देशों के स्थान का निर्देश करते हैं :-- दशोनाष्टशतान्यस्माद्योजनानि महीतलात् । tear सन्ति विमानानि तारकाणां नभोंग ॥३॥ ततोप्ययनभो मुक्त्वा दशयोजन सम्मितम् । श्रादित्यानां विमानानि विद्यन्ते शाश्वतान्यपि ॥४॥ श्रशीतियोजनान्युवं पुनस्त्यक्त्वा भवन्ति खे । चन्द्राणां सविमानान्यतो योजनचतुष्टयम् ||५|| मुक्त्वा नक्षत्रदेवानां विमानानि च सन्त्यनु । त्यक्त्वा योजनचत्वारि बुधानां स्युबिमानकाः ||६ ॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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