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________________ E त्रयोदशोऽधिकारः प्रदर्शनी हि भोगाख्या भोगावती भुजङ्गनी । नागप्रिया सुतोषाय घोषाल्या विमलप्रिया ॥ ६८ ॥ सुस्वरानिन्दितादेवी बेवी भद्रा सुभद्रका । मालिनी पद्ममालाख्या सर्वश्री सर्वसैनिका ॥ ६९ ॥ care दद्रवर्शाख्या मूतकान्ता समाह्वया । सूतमूतप्रिया देवी दत्ता महाभुजङ्गिनी ॥७०॥ अम्विकाय करालाख्या सुरसेना सुदर्शना । इन्द्राणां स्युरिमा देव्यो द्वात्रिंशद्विश्वपिण्डिताः ॥७१॥ [ ४६५ अर्थः-- सोलह इन्द्रों में से प्रत्येक को गरिएका नाम की दो दो प्रधान देवांगनाएँ हैं, इनमें से प्रत्येक की आयु एक-एक पल्य प्रमाण है ।। ६६ । माधुरी, मधुरालाप, मधुरस्वरा, पुरुषप्रिया, पृथुका, सोमा, प्रदर्शनी, भोगा, भोगवती, मुजङ्गिनी, नागप्रिया, सुतोषा, घोषा, विमल प्रिया, सुस्वरा, श्रनिंदिता, भद्रा, सुभद्रका, मालिनी, पद्ममाला, सर्वश्री, सर्व सैनिका, रुद्रा, रुद्रदर्शा भूतकान्ता, भूतप्रिया दत्ता, महामुजङ्गिनी, अम्बिका कराला, सुरसेना और सुदर्शना ये ३२ गरिएका महत्तरिकाएँ व्यन्तरवासी इन्द्रों की हैं ।। ६७-७१ ॥ अब व्यन्तर देवों के तीन प्रकार के निवास स्थानों का अवस्थान सूचित कर उनके नगरों एवं कूटों का प्रमाण कहते हैं :-- श्रष्टानां व्यन्तराणां स्युः पुराणि भवनानि च । श्रवासा इति विज्ञेयास्त्रिविधाः स्थानकाः शुभाः ॥ ७२ ॥ मध्यलोकस्थद्वीपाधि महीषु स्यु पुराणि च । खरांशे पङ्कभागे वाघोलोके भवनान्यपि ॥७३॥ प्रावासाः सन्ति चेतेषामूर्ध्वलोके क्षयोज्झिताः । पर्वताग्रेषु कूटेषु वृक्षाग्रेषु हृदादिषु ॥७४॥ वृत्तोत्कृष्टपुराणां स्याद् व्यासो लक्षैकयोजनः । जघन्यनगराणां किलंकयोजनविस्तरः ॥ ७५ ॥ उत्कृष्ट भवनानां हि सकलोस्कृष्टविस्तरः । योजनद्विशताग्रस्यसहस्रद्वादशप्रमः ॥७६॥ जघन्यभवनानां स्वाद् विस्तरोऽतिजघन्यकः । योजनानामधोलोके पञ्चविंशतिमानकः ॥७७॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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