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________________ ४६० ] सिद्धान्तसार दीपक माणिभद्रस्य वेवी स्यात्कुन्दाख्या बहुरूपिणी । पूर्णभद्रस्य सद्दकी तारका चोत्तमा भवेत् ॥३४॥ भीमस्य वसुमित्रास्ति सुपद्या प्राणवल्लभा । रत्नप्रभा सुवर्णाभा महाभीमस्य चाङ्गना ||३५॥ स्वरूपस्य महादेवी स्वरूपा बहुरूपिणी । प्रतिरूपस्य चेन्द्राणी सुसीमास्ति शुभानना ।। ३६॥ कालस्य कमलादेवी मवेच्च कमलप्रभा । महाकालस्य देवी स्यादुत्पला च सुदर्शना ||३७॥ एते द्वे द्वे महादेव्यों रूपसौभाग्यभूषिते । प्रत्येकं वासवानां स्तो द्वात्रिंशत्ताश्च पिण्डिताः ॥ ३८ ॥ अर्थ :--- एक एक कुल में अन्य देवों से पूज्य दो दो इन्द्र होते हैं और प्रत्येक कुल में देवों से पूजित दो दो प्रतीन्द्र होते हैं । रि५ ।। प्रथम कुल में किन्नर और किम्पुरुष दो इन्द्र हैं । द्वितीय किम्पुरुषों के कुल में सत्पुरुष और महापुरुष ये दो इन्द्र हैं ।। २५-२६ ।। इसके आगे तृतीय आदि कुलों में प्रतिकाय, महाकाय, गोतरथ, गीतकीर्ति, मणिभद्र, पूर्णभद्र, भीम, महाभीम, स्वरूप, प्रतिरूपक काल और महाकाल ये सोलह इन्द्र होते हैं। सोलहों इन्द्रों के सोलह ही प्रतीन्द्र होते हैं। इन सभी इन्द्रों और प्रतोन्द्रों में से प्रत्येक के भिन्न भिन्न दो-दो हजार देवांगनाएँ होती हैं ।।२७-२६|| किन्नर इन्द्र के अवतन्स और केतुमली दो शची हैं । किम्पुरुष के रतिसेना और रतिप्रिया मे दो शची हैं ||३०|| सत्पुरुष के रोहणी और नवमी तथा महापुरुष के हरित और पुष्पवती पे शची हैं ||३१|| प्रतिकाय इन्द्र के भोगा और भगवती तथा महाकाय इन्द्र के प्रनिन्दिता और पुष्पगन्धिनी ये दो दो इन्द्राशियाँ हैं ।। ३२ ।। गोतरति इन्द्र के स्वरसेना और सरस्वती तथा गीतकीर्ति के नन्दिनी और प्रियदर्शा नाम की दो दो इन्द्राणियाँ हैं ।। ३३ ।। मणिभद्र देव के कुन्दा और बहुरूपिणी एवं पूर्णभद्र के तारका और उत्तमा ये दो दो बल्ल भिकाएँ हैं || ३४ || भीम इन्द्र के वसुमित्रा तथा सुपद्मा और महाभीम के रत्नप्रभा एवं सुवर भा ये दो दो इन्द्रारियाँ हैं ||३५|| स्वरूप इन्द्र के स्वरूपा, बहुरूपिणी तथा प्रतिरूप के सुसीमा और शुभनना ये दो दो इन्द्राशियाँ हैं || ३६ || काल इन्द्र कमलादेवी, कमलप्रभा तथा महाकाल इन्द्र के उत्पला और सुदर्शना ये दो दो महादेवियाँ हैं ||३७|| इस प्रकार रूप एवं सौभाग्य से विभूषित दो, दो महा इन्द्रारियां प्रत्येक इन्द्रों के भिन्न भिन्न हैं । इस प्रकार सोलह इन्द्रों के बत्तीस इन्द्रारियां हैं ॥ ३८ ॥ अब व्यन्तर देवों के निवास का एवं उनके पुरों ( नगरों ) आदि का वर्णन करते हैं :--
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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