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द्वादशोऽधिकार
द्वीपानां मानसाहारः सार्थद्वादशभिदिनः । उच्छवासोऽपि मुहूर्तेश्च सार्धंद्वादशसंख्यकैः ॥ १६२॥ अधीनां विद्युवाख्यानां स्तनितानां सुधाभुजाम् । भवेच्च मानसाहारो गर्तर्द्वादशभिदिनः ॥ १६३ ॥ दिव्यामोवमयोच्छ्वासो मुहूर्तेर्द्वादशप्रमैः । दिवकुमारसुराणां चाग्नीनां वातामृता शिनाम् ॥१६४॥ मानसाहार एवस्ति साधं सप्तदिनं गतः । स्यादुच्छ्वासो मुहूर्तेश्व सार्घसप्तप्रमैर्गतः ॥ १६५ ॥
अर्थ :- असुरकुमार इन्द्र के शरीर का उत्सेध पच्चीस धनुष प्रमाण और शेष नागकुमार आदि नव इन्द्रों के शरीर का उत्सेध दस दस धनुष प्रमाण है ।। १६० ।। असुरकुमार देव एक हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर मनसा आहार करते हैं, और एक पक्ष व्यतीत हो जाने पर श्वासोच्छ्वास लेते हैं। नागकुमार, गरुड़कुमार और द्वोषकुमार १२३ दिनों में मानसिक आहार करते हैं और १२३ मुहूर्त में उच्छ्वास लेते हैं ।। १६० १६२ ।। उदधिकुमार, विद्युत्कुमार और स्तनितकुमार देव १२ दिन व्यतीत होने पर प्रहार ग्रहण करते हैं और १२ मुहूर्त व्यतीत होने पर दिव्य एवं सुगन्धमय उच्छवास लेते हैं। दिक्कुमार श्रग्निकुमार और वायुकुमार देव ७३ दिन व्यतीत हो जाने पर श्राहार ग्रहण करते हैं और ७३ सुहूर्त व्यतीत हो जाने पर श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं ।। १६३-१६५।।
घ भवनवासी देवों के अवधिज्ञान का क्षेत्र कहते हैं :
श्रसुराणामुत्कृष्टं चावधिज्ञानं भवोद्भवम् । योजनानामसंख्यात कोटधो भवान्तरादिवित् ॥१६६॥
नागादिनवशेषाणां चासंख्यात सहस्त्रका: 1 योजनानि जघन्यं तत्सर्वेषां पञ्चविंशतिः ॥ १६७ ॥ बहु स्तोक इतिख्यातोऽधिश्च दिक्चतुष्टये । श्वभ्रभूत्रय पर्यन्तमषोभागेऽवधिर्भवेत् ॥ १६८ ॥
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मेरोः शिखरपर्यन्तमूर्ध्वलोकेऽवधिर्मतः । भावनामरसर्वेषां लक्षयोजन सम्मितः ॥ १६९ ॥
अर्थः- प्रसुकुमार देवों का अवधिज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र प्रसंख्यात करोड़ योजन है । ये अपने भवान्तरों को भी जानते हैं ।। १६६ ।। श्रवशेष नागकुमार श्रादि नव इन्द्रों का उत्कृष्ट क्षेत्र प्रसंख्यात