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________________ ४५० ] सिद्धान्तसार दीपक पूज्याः सर्वे प्रतीन्द्राश्च लोकपालामरास्तथा । त्रास्त्रिशसुराः सामानिका एते समानकाः ॥१३६॥ महान्सः स्वस्वशक्रणायुः सम्पदृद्धिशर्मभिः । विक्रियाज्ञानदेवायः किचिनातपत्रकाः ॥१४०।। मर्श:-इन्द्रों की, प्रतीन्द्रों की, लोकपाल देवों को, वायस्त्रिश देवों की और सामानिक को उत्कृष्ट प्रायु समान होती है। इनमें उत्तरेन्द्रों की मायु सिद्धान्त में ( दक्षिणेन्द्रों से ) कुछ प्रति कही गई है ।।१३७-१३८॥ अन्य देवों द्वारा पूज्य समस्त प्रतीन्द्र सथा लोकपाल देव, त्रापस्बिश देखा और सामानिक देवों के छत्र इन्द्र के छत्र से कुछ छोटे होते हैं शेष आयु सम्पत्ति, ऋद्धि, सुश, विनिाई शक्ति, मान भौर देवों के समूह आदि में ये सब अपने अपने इन्द्र के सदृश ही होते हैं ॥११६-१४ पब चमरेन्द्र पावि इन्द्रों को वेवांगनाओं की प्रायु का प्रतिपादन करते हैं : चमरेन्द्रस्य देवीनां सार्धपद्विजीवितम् । बरोचनस्य च स्त्रीणामायुः पन्यत्रयं महत् ॥१४१।। नागेन्द्रस्यङ्गनानां हि पल्याष्टमांशजीवितम् । सुपर्णस्यामरस्त्रीणां त्रिकोटिपूर्वजीवितम् ।।१४२।। छोपाविशेषसप्तानां पत्नीनामायुरुत्तमम् । प्रल्पमृत्युधिनिःक्रान्तं त्रिकोटिवर्षसम्मितम् ।।१४३॥ अर्थ:-पमरेन्द्र की देवांगनामों की उस्कृष्ट प्रायु अढ़ाई ( २) पल्य, वैरोचन की देवियों की तीन पल्य, नागकुमारेन्द्र की देवांगनामों की पल्य के ८ वे भाग, सुपर्णकुमारेन्द्र की देवियों को पाए। तीन पूर्व कोटि और अपघात मृत्यु से रहित द्वीपकुमार मादि शेष सात इन्द्रों की देवियों की उत्कृष्ट प्रायु तीन करोड़ ( ३०००००००) वर्ष की होती है ॥१४०-१४३।। प्रब चमरेन्द्र श्रावि इन्द्रों के अंगरक्षकों, सेना महप्तरों और मनोक देवों को प्राय चमरस्याङ्गारक्षाणां से नामहत्तरात्मनाम् । प्रायः पन्य तथा सैन्यकाना पल्याधजीवितम् ।।१४४॥ तथा वैरोचनस्याङ्गरक्षकाणां स्वजोषितम् । सेनामहत्तराणां हि स्वायुः पल्यं च साषिकम् ॥१४॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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