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________________ द्वादकारः [ ४४e पारिषदों के पास दो दो सौ देवियाँ हैं ।।१२५१ नागेन्द्र की प्रथम परिषदस्थ पारिषद देवों में एक एक देव के अलग-लग दो-दो सौ (२०० ) देवियाँ हैं। मध्यम परिषदस्थ देवों के पृथक् पृथक् एक सौ साठ, एक सौ साठ और अन्तिम परिषदस्थ पारिषदों के एक सौ चालीस ( १४० ) देवियाँ हैं ।। १२६१२७|| सुपर इन्द्र को प्रथम सभा के देवों में एक एक के पृथक पृथक् एक सौ साठ एक सौ साठ देवियाँ हैं। मध्यम परिषद् के देवों की एक सौ चालीस एक सौ चालीस और अन्तिम परिषदस्य पारिषदों की पृथक् पृथक् एक सौ बीस, एक सौ बीस देवियाँ है ।१२८-१२६। श्रवशेष द्वीपकुमार यादि सातों प्रकार . के इन्द्रों की अन्तः परिषदस्थ देवों में प्रत्येक देव के एक सौ चालीस (१४०) देवियाँ हैं ।। १३० ।। मध्यम परिषदस्थ पारिषदों में प्रत्येक देव की एक सौ बीस, एक सौ बीस देवांगनाएं हैं, तथा अन्तिम परिषदस्थ पारिषदों में प्रत्येक देव की सौ सौ ( १०० ) देवांगनाएँ हैं ।। १३१ ।। अनीक देवों के प्रत्येक सेना aftarsi ( महत्तरों में प्रत्येक सेनापति के और प्रत्येक अंगरक्षक के अपने अपने पूर्व पुण्य के फल से उत्पन्न होने वाली सौ सौ देवांगनाएँ हैं ।। १३२ ।। प्रत्येक अनीक देवों के पचास पचास और हीन से होन देवों के बत्तीस बत्तीस देवांगनाएँ होती हैं ।। १३३ ।। सुरेन्द्र आदि दसों इन्द्रों की प्रायु का कथन करते हैं :—— असुराणां भवेदायुरुत्कृष्टं सागरोपमम् । दशवर्षसहस्राणि जघन्यायुनं संशयः ॥ १३४ ॥ नागानां परमायुः स्यात्पन्योपम श्रयप्रमम् । गरुडानां भवत्याः सार्धंपन्यद्वयं परम् ॥ १३५ ॥ दीपानामायुरुत्कृष्टं पल्यद्वयमखण्डितम् । शेषाध्याद्विषण्णां स्यात्सार्थं पन्येकजीवितम् ॥१३६॥ अर्थ :- सुरकुमारों की उत्कृष्ट प्रायु एक सागरोपम और जयन्यायु दश हजार वर्ष प्रमाण है । नागकुमारों की तीन पल्पोपम और गरुड़कुमारों की उत्कृष्ट प्रायु २३ पल्योपम प्रमाण है । द्वीपकुमारों की उत्कृष्ट ग्रायु दो पत्योपम तथा शेष छह उदधिकुमारादिकों की उत्कृष्ट घायु डेढ (१३ ) पत्योपम प्रमाण है ( जघन्य प्रायु दश हजार वर्ष है ) ।। १३४ - १३६ ।। अब इन्द्रादिकों की और उत्तरेन्द्रों की श्रायु आदि का निरूपण करते हैं :-- इन्द्राणां च प्रतोद्राणां लोकपालामृताशिनाम् । प्रायस्त्रिशसुराणां च सामानिकसुधाभुजाम् ॥१३७॥ उत्कृष्टायुरिवं ख्यातं तेषां मध्ये सुधाभुजाम् । उत्तरेन्द्रस्य सिद्धान्ते तदायुः साधिकं मतम् ॥ १३८ ॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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