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________________ द्वादशोऽधिकार [ ४४३ षष्ठ कक्ष में २० लाख ४८ हजार और सप्तम कक्ष में महिषों की संख्या ४० लाख ६६ हजार है । इस प्रकार चमरेन्द्र के सातों अनीकों ( कक्षानों) के महिषों का एकत्रित योग ८१ लाख २८ हजार (८१२८०.० ) होता है ।। अब चमरेन्द्र के अनीकों को सम्पूर्ण संख्या और पैरोचन के महिषों की संख्या कहते हैं :-- इत्येवं महिषानीक समानास्तुरगादयः। प्रोक्ता गणनयाशेषाः षडनीका पृथक् पृथक् ॥१३॥ पञ्चकोटयोऽष्टषष्टिश्च लक्षाः षण्णवतिस्तथा । सहस्रा इति संख्या: प्रोविता गणना जिनः ॥१४॥ पिण्डिता चमरेन्द्रस्य सिद्धान्ते निखिला सताम् । महिषाश्वादि सप्तानामनीकानां शुभाप्तये ।।६।। वैरोचनस्य चानीके प्रथमे महिषा मताः । पष्टिसहस्रसंख्याश्च तेभ्योऽनीकेषु षट्स्वपि ॥६६।। शेषेषु महिषाः प्रोक्ता द्विगुणाद्विगुणाः पृथक् । पूर्ववत्पुनरेतेषां संख्या व्यासेन चोच्यते ॥१७॥ अर्थः- इसप्रकार चमरेन्द्र की सातों कक्षाओं के महिषों की जितनी संख्या कही गई है, उतनी हो संख्या अश्व मादि अवशेष छह अनीकों की पृथक् पृथक् कही गई है ।। ६३ ॥ जिनेन्द्र भगवान ने पागम में सज्जनों को शुभ (कल्याण) की प्राप्ति के लिये चमरेन्द्र की महिष, अश्व आदि सातों अनीकों की एकत्रित संख्या का योग पांच करोड़ ६८ लाख ६६ हजार ( ५६८६६००० ) कहा है ।।१४-१५॥ वैरोचन को प्रथम अनीक में महिषों की संख्या ६० हजार है। इनके शेष छह कक्षों में महिषों की पृथक् पृथक् संख्या दुगनी दुगनी है, जो पृथक् पृथक् कही जाती है ।।६६-६७।। अब वैरोचन की प्रत्येक कक्षाओं को भिन्न भिन्न संख्या कहते हैं :-- वैरोचनेन्द्रस्य प्रथमे अनीके महिषाः षष्टिसहस्राणि । द्वितीये चैकलक्षविंशतिसहस्राणि । तृतीये द्विलक्षचत्वारिंशत्सहस्राणि । चतुर्थे चतुर्लक्षाशीतिसहस्राणि । पञ्चमे नवलक्षषष्टिसहस्राणि । षष्ठे एकोनविंशतिलक्षविंशति सहस्राणि । सप्तमे अनीके महिषाः अष्टत्रिशल्लक्ष चत्वारिंशत्सहस्राणि । सर्वे एकत्रीकृताः सप्तानीकानां महिषाः षट्सप्तति लक्षविंशति सहस्राणि भवेयुः। अर्थः-वैरोचनेन्द्र की प्रथम अनीक में ६० हजार महिष, द्वितीय में एक लाख २० हजार, तृतीय में दो लाख ४० हजार, चतुर्थ में ४ लाख ८० हजार, पंचम में १ लाख ६० हजार, षष्ठ में १६
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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