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सिद्धान्तसार दोषक
अर्थ :- असुरेन्द्र के पूर्व पुण्य के फल से उत्पन्न होने वाली, प्रोति उत्पन्न कराने वालीं और पृथक् पृथक् सात-सात कक्षाओं से युक्त महिष, श्रेष्ठ अश्व, रथ, गज, पदाति, गन्धर्व और नर्तकी ये सात श्रनीक- सेनाएँ (देव) होतीं हैं ।। ८५-८६ ।। श्रवशेष नागकुमार ग्रादि नव भवनवासी इन्द्रों के पुण्य फल स्वरूप, देवों की विक्रिया से उत्पन्न, इन्द्रों को प्रीति उत्पन्न कराने वाली और सात-सात कक्षाओं से युक्त श्रनीक ( सेनाएँ ) होतीं हैं। इन अनीकों में प्रत्येक इन्द्र के अनुक्रम से नाव, गरुड़, गज, महामत्स्य, ऊँट, खड्गी ( गेंडा ) सिंह, शिविका और घोड़ा ये प्रमुख होतीं हैं, शेष छह प्रनीकें पूर्व में जैसे श्रसुरेंद्र के क्रमश: घोड़ा, रथ, हाथों आदि कहे हैं उसी प्रकार नागकुमार श्रादि तव इन्द्रों के भी यथा क्रम से जामना चाहिए। यथा
१. असुरकुमार - महिष, घोड़ा, रथ, हाथी, प्यादे गन्धर्व और नर्तकी । २. नागकुमार - नाव, घोड़ा, एव, हावी, पान्थ और नको । ३. सुपर्णकुमार गरुड़, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नर्तकी । ४. द्वीपकुमार - हाथी, घोड़ा, रथ, हाथी, पधादे, गन्धर्व और नर्तकी | ५. उदधिकुमार मगर, घोड़ा, रथ, हाथी. पयादे, गन्धवं श्रौर नर्तको । ६. विद्युत्कुमार- ऊँट, घोड़ा, रथ, हाथी, पया, गन्ध और नर्तक । ७. स्वनितकुमार खड्गी, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धवं और नतंकी । ८. दिवकुमार सिंह, घोड़ा, रथ, हाथी. पयादे गन्धर्व और नर्तकी ।
६. अग्निकुमार - शिविका, घोड़ा. रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नर्तकी ।
१०. वायुकुमार - अश्व, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादं गन्धवं और नतंकी ।। ८५-६०।।
( सुरकुमार के ) चमरेन्द्र के प्रथम अनीक में देदीप्यमान शरीर वाले, देवताओं से मण्डित और ऊँचे ऊँचे ६४ हजार महिष हैं। इन्हीं चमरेन्द्र को शेष छह कक्षों में से प्रत्येक कक्ष में महिषों की संख्या का प्रमाण दूना दूना होता गया है ॥६१-६२॥
एषां सप्तमहिषानीकेषु प्रत्येकं महिषाणां संख्या प्रोच्यते : --
मरेन्द्रस्य प्रथमे अनीके महिषाश्चतुःषष्टि सहस्राणि द्वितीये चँकलक्षाष्टाविंशतिसहस्राणि । तृतीये द्विलक्षषट्पञ्चाशत्सहस्राणि । चतुर्थे पञ्चलक्षद्वादशसहस्राणि । पञ्चमे दशलक्ष चतुर्विंशतिसहस्राणि षष्ठे विंशतिलक्षाष्ट चत्वारिंशत्सहस्रारिण सप्तमे अनीके महिषाश्चत्वारिशल्लक्ष षण्णवति सहस्राणि । सर्वे अमी सप्तानीकानां पिण्डीकृताः महिषाः एकाशीतिल आष्टाविंशतिसहस्राणि भवन्ति । श्रर्थः:- अब सात कक्षों में से प्रत्येक कक्ष के महिषों की पृथक् पृथक् संख्या कहते हैं। चमरेन्द्र की प्रथम कक्ष में ६४ हजार महिष हैं । द्वितीय कक्ष में एक लाख २८ हजार तृतीय कक्ष में दो लाख ५६ हजार, चतुर्थ कक्ष में ५ लाख १२ हजार, पञ्चम कक्ष में १० लाख २४ हजार,
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