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________________ द्वादशोऽधिकारः [ ४३३ मणि गस्ततो दीप्तो गरुडो गजसत्तमः । मकर: स्वस्तिक बन्न सिंहाच कलशस्ततः ॥१६॥ तुरगोमूनि चिह्नानि राजन्ते मुकटे क्रमात । दशमेगामिनीप्राणि हा भारतामनाम् । १.! अर्थः-सभी असुरकुमार देव कृष्ण वर्ण के, नागकुमार और उदधिकुमार पाण्डु वर्ण के स्तनित कुमार, दियकुमार और सुपर्ण कुमार, काञ्चन वर्ण के. विद्युत्कुमार द्वीपकुमार एवं अग्निकुमार ये सभी देव अत्यन्त सुन्दर नीलवर्ण के हैं और वायुकुमार के देव लालवर्ण के होते हैं इनमें इस प्रकार वर्ण भेद हैं ।।१७-१८।। दसों कुलों में उत्पन्न असुरकुमार आदि भवनवासी देवों के मुकुटों में कम से चूड़ामणि, नाग, गरुड़, उत्तम हाथी, मगर, स्वस्तिक, वच, सिंह, कलश और अश्व ये देदीप्यमान दश चिह्न सुशोभित होते हैं ।।१९-२०॥ अब भवनवासी वेधों के भवनों को पृथक पृथक् संख्या कहते हैं :-- असुराणां चतुःषष्टि लक्षाणि भवनानि च । नागानां चतुरनाशीतिलक्षप्रमिता ग्रहाः ॥२१॥ द्वासप्ततिश्च लक्षाणि सुपर्णानां गृहास्ततः । द्वीपानामुदधीनां च विद्युतां स्तनितात्मनाम ॥२२॥ दिगाख्यानां तथाग्नीनां प्रत्येकं भवनानि च । स्युः षट्सप्तति लक्षाणि वातानां गृहसत्तमाः ॥२३॥ स्युः षण्णवति लक्षाण्यमी सर्वे पिण्डिता गहाः । द्वासप्ततिश्च लक्षाणि सप्तकोटियुतानि च ॥२४॥ अर्थः--असुरकुमार देवों के चौंसठ लाख भवन हैं। नागकुमार देवों के चौरासी लाख, सुपर्णकुमार के बहत्तर लाख, द्वीपकुमार के ७६ लाख, उदधिकुमार के ७६ लाख, विद्युत्कुमार के ७६ लाख, स्तनितकुमार के ७६ लाख, दिक्कुमार के ७६ लाख, अग्निकुमार के ७६ लाख और वायुकुमार के ६६ लाख भवन हैं ॥२१-२३॥ इन दस कुलों के सर्व भवनों का एकत्रित योग (६४ ला+८४ ला० + ७२ ला० + (७६ ला०४६)+६६=) ७७२००००० अर्थात् सात करोड़ बहत्तर बाख है ॥२४॥ अब वश कुल सम्बन्धी बीस इन्द्रों के नाम, उनका विशागत अवस्थान और प्रतीन्द्रों की संख्या कहते हैं :--- प्रथमश्चमरेन्द्राख्यो वैरोचनो द्वितीयकः । भूतानन्दस्तृतीयेन्द्रो धरणानन्दसंज्ञकः ॥२५॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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