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________________ ४३२ ] सिद्धांतसार दीपक तक अल्पऋद्धि धारक भवनवासी देवों के शाश्वत भवन हैं ।। १०॥ भूतल में बयालीस हजार तक महाऋद्धि धारक भवनवासी देवों के उत्तम भवन हैं, और चित्रा भूमि से नीचे एक लाख योजन तक मध्यम ऋद्धि धारक विमानवासी देवों के विपुल भवन है ।।११-१२। अब भवनवासी देवों का प्रमास्य दर्शाते हैं :-- घनाङ्गुलस्य यन्मूलं प्रथमं श्रेणिसंगुणस् । तत्समा जातिभेदेन दशधा भावनामराः ॥ १३ ॥ श्रर्थः -- घनांगुल के प्रथमवर्ग मूल को जगत्छ्र ेणी से गुरिंगत करने पर जो प्रमाण प्राप्त होता है, उतने ही दश प्रकार की जाति भेद से युक्त भवनवासी देवों का प्रमाण है || १३|| अब भवनवासियों के दश जातियों के नाम और उनकी कुमार संज्ञा को सार्थकता का दिग्दर्शन करते हैं। -: असुरानागदेवाः सुपर्णाद्वीपास्तथाब्धयः । विद्युतः स्तनिताख्या दिक्कुमारा अग्निसंज्ञकाः ॥१४॥ वाताभिधा हमे देवा दशभेदाः स्वजातितः । नाना सम्पद्युताः प्रोक्ता भावना श्रागमे जिनैः ।। १५ ।। कुमारा इव सर्वत्र क्रीडन्त्येते ततो मताः । असुरादिकुमाराश्च सर्वे सार्थकनामकाः ||१६|| अर्थ :--- जिनेन्द्र भगवान ने आगम में अनेक प्रकार की सम्पत्ति से युक्त भवनवासी देवों के असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, विद्युतकुमार, स्तनितकुमार, दिवकुमार, अग्निकुमार और वायुकुमार नामक देश भेद कहे हैं ||१४-१५|| ये सभी देव कुमारों के सदृश सर्वत्र क्रीड़ा करते हैं, इसलिये इनके असुर कुमार यादि दसों कुलों के अन्त में कुमार शब्द सार्थक नामवाची है || १६|| अब दसों कुलों में प्रवस्थित असुरकुमारादि देवों के वर्ण और चिह्न कहते हैं :प्रसुराः कृष्णसद्वर्णा नागाब्धयश्च पाण्डुराः । स्तनिता दिवकुमाराः स्युः सुपर्णाः काञ्चनप्रभाः ॥१७॥ विद्युद् द्वीपाग्नयो नीलवर्णा प्रत्यन्तसुन्दराः । अरुणा मरुतोऽत्रेति वर्णभेदान्विता इमे ॥१८॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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