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________________ [ ४६ । पृष्ठ पंक्ति १३ २११ अशुद्ध किया गया था पद्यप वक्तृश्रोतृयत्पाद्य स्याज्जरासंघो विषयाशक्ति अर्थ:- xxx ३ ३०१ किया था पद्मप्रभु वक्तृश्रोतृयत्याद्य स्थाजरासिन्धो विषयासक्ति ऋषभनाथ के काल में पृथ्वीपर भीम और बलि ये दो रुद्र हुए नरवाङ्गिनाम् . m नराकाङ्गिनाम् २७ - vir or mrr दो ३४८ ३५२ ३८० ४०१ ४०३ ४१६ ४२३ O IN भोगक्रुभूमिज कुभोगभूमिज कहा गई कहा गया दो-दो ५२६६०६१ ५२६०६ENE पूर्वोक्तप्रमाण ( ) पूर्वोक्त प्रमाण (१० यो.) सहेरे सहस्र जिननिां जिना नां धत वारिधी घृतवारिधी तथा अपने मन वचनको गुद्ध करके पढ़े। अनिल योनियों अनल योनियों वल्जी बल्ली भवनवासियों देवगति देवगति की पर्यापपर्याप्त पर्याप्तापर्याप्त पर्यापापात पर्यापता विरच्यते विरचिते वेतयोवृक्षोऽग्निसङ गुः बेतसोवृक्षोऽप्रियङ गुः प्राधाश्च प्राद्याश्व कहते करते ar ४२८
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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