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________________ ३५० ] सिद्धान्तसार दोपत्रा योजनानां सहस्राणि भवत्यनशतानिषट् । सार्धकोश इति व्यासो देशाना स्यात् पृथक् पृथक् ॥१५६।। विदेह विस्तरस्या नदीच्यासोनितं च यत् । पोना एक साताममित भेदतः ॥१५॥ त्रिविधोऽखिलदेशानां प्रत्येकं वृद्धिह्रासमाक् । यक्षाराचलदेवारण्यादीनां कीतितो जिनः ।।१५८।। चतुःसहस्रसंख्यानि तथा पञ्चशतानि च । त्र्यशीतिर्योजनानां द्विशतद्वादशभागिनाम् ||१५६॥ मागानां किल भागाः षण्णवत्यग्रशलप्रमाः । इत्यायामप्रवृद्धिः स्यात् कच्छादि विषयं प्रति ॥१६०॥ अर्था:-धातकीखण्ड में पूर्व कहे हुए नाम वाले बन्नीस देश हैं, जिनके एक एक विजया पर्वत और गंगासिन्धु नाम की दो दो नदियों द्वारा छह छह खण्ड होते हैं ।।१५४।। मेरु पर्वत से पूर्व दिशा में कच्छा नाम का महान देश है, और मेरु से पश्चिम दिशा में गन्धमालिनी नाम का महान देश है। इन ३२ ही देशों में से पृथक् गृथक् एक एक देश का व्यास ६६०३३ योजन प्रमाण है ।।१५५-१५६॥ विदेह क्षेत्र के विस्तार को प्राधा करके उसमें से नदो का व्यास घटा देने पर प्रत्येक क्षेत्र की लम्बाई का प्रमाए प्राप्त होता है। जिनेन्द्र भगवान के द्वारा बत्तीस देशों. वक्षार पर्वतों और देवारण्य आदि बनों का प्रायाम प्रादि, मध्य और अन्त में वृद्धि-हानि को लिए हुये तीन तीन प्रकार का कहा गया है। अर्थात् प्रादि मायाम से मध्य में और मध्य आयाम से अन्त में, इस प्रकार प्रत्येक में दो दो बार स्व वृद्धि का प्रमाण बढ़ता है। १५७-१५८ ॥ इनमें से देश भायाम की वृद्धि का प्रमाण ४५८३११ योजन है ॥१५६-१६०|| अब धातकीखण्ड विदेहस्थ वक्षार पर्वतों का प्रायाम प्रादि कहते हैं :-- सहस्रयोजनच्यासाद् द्वयष्टवक्षारपर्वताः । भवन्ति विविधायामाः प्रागुक्तोत्सेधसम्मिता ॥१६१॥ चतुःशतानि सप्ताग्रसप्ततिर्योजनानि च । षष्टिभागा इहायामवृद्धिर्वक्षारभूभृतः ॥१६२।। अर्थः-सोलह वक्षार पर्वतों की ऊँचाई पूर्व त हे हुए जम्बूद्वीपस्थ वक्षार पर्वतों को ऊंचाई सदश है । लम्बाई अनेक प्रकार को है, और चौड़ाई १००० योजन प्रमाण है । प्रत्येक क्षार के प्रादि मध्य अन्तायाम में वृद्धि का प्रमाग ४७७३१२ योजन है ।।१६१-१६।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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