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________________ ___३३२ ] सिद्धान्तसार दीपक पाठ योजन ऊंचे और चार योजन चौड़े द्वारों से अलंकृत है ११७१-७२।। उस भवन में एक पल्य की प्रायु से युक्त और दश धनुष ऊँचे दिव्य शरीर को धारण करने वाला गोतम नाम का देव अपने परिवार देव देवियों के साथ निवास करता है ।।७३॥ प्रब लवरण समुद्र के अभ्यन्तर तट सम्बन्धी २४ अन्तर द्वीपों का सविस्तार वर्णन करते हैं :-- अन्धेर्वेदीतटादगत्वा शतपञ्चप्रमाणि च । योजनानि चतुदिक्षु सन्ति द्वीपाश्चतुःप्रमाः ॥७४।। शतयोजनविस्तीर्णाः कुभोगमूनरान्विताः। पुनस्पक्त्याम्बुधेस्तीरं तावन्ति योजनानि च ॥७५।। चतुर्विदिक्षु चत्वारः स्युर्तीपा विस्तृताः स्फुटम् । योजनः पञ्चपञ्चाशत्प्रमः कुनृयुगाश्रिताः ॥७६॥ योजनानि विहायाब्धेः सार्धं पंचशतानि च।। दिग्विदिग्मध्यभागाष्टान्तरदिक्षुक्षयातिगाः ॥७७॥ पञ्चाशद्योजनव्यासा द्वीपा प्रष्टौ भवन्ति ।। पार्वयोधच द्वयोरब्धौ हिमवद्विजयायोः ॥७॥ रूप्याचलशिखर्यद्रयोः प्रत्येक योजनान्यपि । षट्शतानि विमुच्यस्तो द्वौ द्वौ द्वीपौ पृथक् पृथक् ।।७।। कुलाद्रिद्वयरूप्याद्रिद्वयान्तमस्तकाश्रिताः । भवेयुर्मलिता प्रष्टौ द्वीपाः सर्वे सुविस्तृताः ।।८०॥ योजना पंचविंशत्या कुत्सिताभोगभूयुताः । समस्ताः पिण्डिता एते चतुर्विशति सम्मिताः ।।१।। तीयोदयावगाहस्य संयोगेन समोन्नताः । सर्वे द्वीपा जलाध्वं योजनेकोच्छिता मताः ॥२॥ अर्थ:-लवण समुद्र की वेदी के तट से ५.० योजन आगे जाकर चारों दिशाओं में सौ सौ योजन चौड़े और कुभोगभूमिज मनुष्यों से संकुलित चार द्वीप हैं । पुनः समुद्र तीर से ५०० योजन आगे जाकर चारों विदिशामों में ५५ योजन विस्तार वाले और कुभोगभूमिज मनुष्य युगलों से भरे हुये चार द्वीप हैं ।।७४-७६।। समुद्र तट को ५५० योजन छोड़ कर दिशाओं और विदिशात्रों के मध्य
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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