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________________ दशमोऽधिकार। [ ३२१ 1- प्रकार के उपरम भाग में पद्म नाम की वेदी है, जो शाश्वत है पांच सौ धनुष चौड़ी है और दो कोश ऊँची है || ६ || श्रव कोट के चारों दिशाओं में स्थित द्वारों के नाम, प्रमाण और उनके ऊपर स्थित जिन प्रतिमानों का निरूपण करते हैं :-- शालस्य पूर्वदिग्भागे द्वारं विजयसंज्ञकम् । दक्षिणे वैजयन्ताख्यं द्वारं भागे च पश्चिमे ||७|| जयन्तमुत्तरे गोपुरद्वारमपराजितम् । चत्वारिगोपुराणीति नानारत्नमयान्यपि ||६|| प्रत्येकं गोपुराणां च योजनाष्टसमुन्नतिः । सर्वत्र ध्यास आयाम चतुर्योजन सम्मितः ॥६॥ गोपुरद्वारसर्वेषु जिनेन्द्रप्रतिमाः पराः । सन्ति भामण्डलच्छ सिहासनश्र अर्थः- कोट की पूर्व दिशा में विजय, दक्षिण में वैजयन्त, पश्चिम में जयन्त और उत्तर में पराजित नाम के नाना प्रकार के रत्नमय चार गोपुर द्वार हैं। ये प्रत्येक गोपुरद्वार प्राठ योजन ऊँचे, चार योजन चौड़े और चार योजन लम्बे हैं, इन समस्त द्वारों पर भामण्डल, तीन छत्र एवं सिंहासन आदि से युक्त जिनेन्द्र प्रतिमाएँ हैं ।।७-१०|| :-- अब इन चारों गोपुरद्वारों के अधिनायकों का कथन करते हैं। विजयो वैजयन्तोऽथ जयन्ताख्पोऽपराजितः । चत्वारो व्यन्तराधीशा एते पत्येकजीविनः ||११॥ भिर्बहुन्या समृद्धा अधिनायकाः । पूर्वादिदिक्प्रतोलीनां दिव्यदेहा भवन्ति च ॥१२॥ अर्थः:- इन नारों द्वारों के क्रमशः विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नाम के चार व्यन्तर देव हैं । पूर्वादि दिशाओं में स्थित प्रतोलियों के ये चारों अधिनायक दिव्य देह के घारी, एक पल्य की आयु से युक्त और देवों की अनेक प्रकार की सेनाओं से समृद्ध होते हैं । । ११-१२ ॥ अब चारों गोपुरद्वारों के ऊपर स्थित नगरों का वर्णन करते हैं। ! श्रमीषां विजयादीनां प्रत्येकं पुरमुत्तमम् । सर्वत्रायामविष्कम्भं सहस्रद्वादशप्रः ||१३||
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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