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________________ नबमोऽधिकारः [ ३१६ इति श्रीसिद्धांतसारदीपकमहाग्रन्थे भट्टारक श्रीसकलकोति विरचिते अवसपि ण्युत्सपिणी षट्काल प्ररूपको नाम नबमोधिकारः । अर्थ:-- इन छह कालों के मध्य चतुर्थ नाल में पाठ गुरण ही हैं शरीर जिनका ऐसे सिद्ध परमेष्ठी हुए हैं। पढ़ाई द्वीप में जो अठारह दोषों से रहित, सम्पूर्ण गुणों से सहित, विनाश रहित और देव समूह से पूज्य जिनेन्द्र अर्हन्त हए हैं, तथा जगत का हित करने वाले एवं चारित्र गुण से विभूषित आचार्य, उपाध्याय और सर्ग साधु हुए हैं, उन सब जिनेन्द्रादि-पंचपरमेष्ठियों को मैं अनुपम गति की प्राप्ति के लिए नमस्कार करता हूँ॥३६७।। इस प्रकार भट्टारक सकलकी ति विरचित सिद्वान्तसारदीपक नाम महाग्रन्थ में अवसपिरणो-उत्सपिणी के छह कालों का प्ररूपण करने वाला नवमा अधिकार समाप्त
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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