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________________ नवमोऽधिकारः [२६६ स्वयंभूभूभृतोऽब्दानां षष्टिलक्षाणि जीवितम् । स्यात्पुरुषोत्तमस्याय: त्रिशलक्षाब्दसम्मितम् ।।२२४॥ प्रायः पुरुषसिंहस्य दशलक्षाग्दगोचरम् । पञ्चषष्टिसहस्राब्दाः पुण्डरीकस्य जीवितम् ।।२२।। बत्तस्यायुः परं द्वात्रिंशत्सहस्राब्दमानकम् । वर्षाणां लक्ष्मणस्यायुः सहस्रद्वादशप्रमम् ॥२२६॥ कृष्णस्य वासुदेवस्य सहस्रवर्षजीवितम् । इत्यत्र वासुदेवानां सन्त्यायू षि क्रमात् तथा ॥२२७॥ अर्थ :-प्रथम नारायण त्रिपृष्ट को प्राय ८४ लाख वर्ष की, द्विपृष्ट को ७२ लाख वर्ष की, स्वयम्भू की ६० लाख वर्ष की, पुरुषोत्तम की ३० लाख वर्ष की, पुरुषसिंह की १० लाख वर्ष की, पुण्डरीक की ६५००० वर्षा की, दत्त नारायण को ३२००० वर्ष की, लक्ष्मण की १२००० वर्ष की और अन्तिम वासुदेव कृष्ण को प्राथु १००० वर्षा प्रमाण थी। इस प्रकार वासुदेवों को यह आयु क्रम से होती है ।।२२३-२२७॥ अन नारायणों के सात रत्नों का एवं अन्य विभूति का वर्णन करते हैं : धनुः शङ्खो गदा चक्रं दण्डोऽसिः शक्तिरेव च । इमानि सप्तरत्नानि रक्षितानि सुरव्रजः ॥२२८।। विन्यरूपाः सुदेव्यः स्युः सहस्रषोडशप्रमाः । नृपा मुकुटबद्धाश्च सहस्र द्वयष्टसम्मिताः ।।२२६।। अमोषां वासुदेवानां सर्वेषां भूतयोऽपरा: । गजादिगोचरा बह्वषो विज्ञेया पागमे बुधः ॥२३०॥ अर्थः- प्रत्येक नारायण के पास देव समूह के द्वारा रक्षित धनुष, शंख, गदा, चक्र, दण्ड, असि, और शक्ति ये सात रत्न एवं दिव्य रूप को धारण करने वाली सोलह हजार श्रेष्ठ रानियाँ होती हैं, तथा मुकुटबद्ध सोलह हजार राजा इनकी सेवा करते हैं। इन सभी वासुदेवों के अन्य बहुत जनसमुदाय एवं हाथी घोड़े आदि होते हैं, जो विद्वानों के द्वारा प्रागम से जानने योग्य है ॥२२७-२३०।। अब नारायणों की गति विशेष का वर्णन करते हैं :-- त्रिपृष्टोऽपि महापापः सप्तमीभूमिमाश्रितः । हिपृष्टाण्यः स्वयंभूश्च पुरुषोत्तमसंज्ञकः ॥२३१॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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