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________________ नवमोऽधिकारः [ २६१ पल्याधम् । कुन्थी सहस्रकोटि वर्षोनपल्य पादं । अरे सहस्रक्रोटि वर्षाणि । मल्लिनाथे चतुःपञ्चाशल्लक्षवर्षाणि । मुनिसुव्रते षड्लमवर्षाणि। नमिनाथे पञ्चलक्षवर्षारिख । नेमिनाथे सार्थसप्तशताधिकश्यशीतिसहस्रवर्षारिण । पावें निर्वाणं गते श्री वर्धमाने उत्पन्ने सति तयोः पाववर्धमानयोर्मध्ये जिनांतरं सार्धाष्टमासापत्रिवर्ष हीनसार्धद्विशतवर्षारिए । यदा वीरनाथो मोक्षं गतः तदा चतुर्थकालः सार्धाष्टमास त्रिवर्षप्रमोऽवशिष्टोऽभूत् । पञ्चमषष्टसमानकाल योद्वयो: संख्या द्विचत्वारिंशत्सहस्रवर्षारिण। एवं सर्वे जिनान्तरकालाः एकत्रीकृताः कोटीकोटिसागरोपमाः भवन्ति । अर्थ:- वृषभनाथ भगवान् के मोक्ष चले जाने पर ५० करोड़ लाख सागर ३ वर्ष ८ माह व्यतीत हो जाने पर अजितनाथ भगवान् मुक्ति गये। अजितनाथ के मोक्ष जाने के बाद तीस लाख करोड़ सागर का, सम्भवनाथ भगवान के बाद दश लाख करोड़ सागर का, अभिनन्दन नाथ के जाने पर ह लाख करोड़ सागर का, सुमतिनाथ के बाद ६० हजार करोड़ सागर का, पद्यप्रभु के बाद नी हजार करोड़ का, सुपार्श्वसागर के बाद ६ सौ करोड़ सागर का, चन्द्रप्रभु के बाद ६० करोड़ सागर का, पुष्पदन्त के मोक्ष जाने के बाद इ करोड़ सागर का, शीतलनाथ के मोक्ष जाने के बाद (एक करोड़ सागर) १०००००००-६६२६१००=३३७३६०० सागर का, श्रेयांसनाथ भगवान के मोक्ष जाने के बाद ५४ सागर का, वासुपूज्य भगवान् के ३० सागर का, विमलनाथ के सागर का, अनन्तनाथ के चार सागर का, धर्मनाथ के मोक्ष जाने के बाद पल्य कम तीन सागर-मर्थात् ३ सागर- पल्य२ सागर और ६६६REE CERTEERE पल्य का, शान्तिनाथ के मोक्ष गमन के बाद प्रधं पल्प का, कुन्थुनाथ के बाद हजार करोड़ वर्ष कम पल्य (पल्य--१००० करोड़ वर्ष ) का, अरनाथ के एक हजार करोड़ वर्ष का, मल्लिनाथ के ५४००० वर्ष का. मुनिसुव्रतनाथ के ६००००० वर्षों का, नमिनाथ के ५००००० वर्षों का, नेमिनाथ के ८३७५० वर्षों का और पाश्र्वनाथ भगवान के मोल जाने के बाद तीन वर्ष साढ़े आठ मास कम २५० वर्ष अर्थात् ( २५०-३ वर्ष ८ मास ) =२४६ वर्ष, ३ मास और एक मास बाद वोर प्रभु मोक्ष गये अतः यह पार्वजिनेन्द्र और वीरजिनेन्द्र इन दोनों के मध्य का अन्तर है। जब वधमान स्वामी मोक्ष गये तब चतुर्थ काल के तीन वर्ष ३ मास अवशेष थे पञ्चम और षष्ठ ये दोनों काल इक्कीस-इक्कीस हजार वर्ष के हैं, इन दोनों का एकत्रित काल ४२००० वर्ष प्रमाण है जिनेन्द्रों के सर्व अत्तार कालों को एकत्रित करके उसमें दोनों कालों के ४२००० वर्ष जोड़ देने पर एक कोटाकोटि सागरोपम का प्रमाण हो जाता है। प्रब जिनधर्म का उच्छेदकाल दर्शाते हैं :-- पुष्पदन्तस्य कालान्ते धर्मन्युच्छित्तिरंजसा । पल्यस्यासीच्चतुर्थांशः पन्या शीतलस्य च ॥१६॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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