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सिद्धान्तसार दीपक ___ अर्थ:-इसके बाद पल्य के आठ लाख भाग व्यतीत हो जाने के बाद यहां पर हेम सदृश प्राभा को धारण करने वाले, यशोधारशी प्रिया के स्वामी सीमन्धर नाम के मनु उत्पन्न हुए थे ।।७६।। इनकी प्रायु पल्य के दशलाख भागों में से एक भाग ( Trana पल्य' ) प्रमाण एवं शरीर की ऊँचाई ७२५ धनुष प्रमाण थी॥७७! आपके द्वारा 'हा-मा' दण्डनीति निर्धारित की गई थी। इस समय में काल हानि के प्रभाव से कल्पवृक्ष अत्यन्त बिरले एवं अत्यन्त मन्द फल प्रदान करने वाले हो गये थे, इस कारण से प्रार्य जनों के परस्पर में बहुत कलह होने लगा था, तब अति निपुण मापने झाड़ी, डाली, झौंरा, गुच्छा एवं फल आदि चिह्नों के द्वारा उनकी सीमा बांध दी थी॥७५-७६। इसके बाद पल्य के अस्सी लाख भाग व्यतीत हो जाने पर सुमति महादेवी के स्वामी अत्यन्त निपुण विमलवाहन नाम के मनु उत्पन्न हुए ।।८०॥ इनके शरीर को कान्ति स्वर्ण के सदृश और ऊँचाई ७०० धनुष थी। प्रायु पल्य के एक करोड़ भागों में से एक भाग ( प पल्य ) प्रमाण थी। प्रारके द्वारा भी "हा-मा' नीति निर्धारित की गई थी।८१॥ इन्होंने प्रजा को अंकुश आदि आयुधों का धारण व प्रयोग करना तथा हाथी आदि पर चढ़ना (सवारी करना) बतलाया था ॥२॥ पश्चात् पल्य के पाठ करोड़ भाग व्यतीत हो जाने के बाद यहाँ पर धारिणी प्रिया के स्वामी महान कुलकर चक्षुष्मान हुए 1।८३॥ प्रापके शरीर की ऊँचाई ६७५ धनुष और कादि प्रियंमुपरिण के ला हरित नशा की भी। प्रायु का प्रमाण पल्य के दश करोड़ भागों में से एक भाग ( क पल्य ) प्रमाण था । अबधिज्ञान ही आपके नेत्र थे । अर्थात् पाप अवधिज्ञान से देखते थे । उस समय पूर्व में कभी नहीं देखे हुए अपने पुत्र के दर्शन से जीवित रहने वाले आर्य जनों को बहुत भय उत्पन्न हुआ, उसी क्षण फुलकर ने अपने पुत्र की उत्पत्ति सुख प्राप्ति के लिए होती है, ऐसा कह कर सन्तान वृद्धि से होने वाले उन जीवों के भय को दूर कर दिया ।।८४-८६।।
सार्थक नाम को धारण करने वाले उन चक्षुष्मान् कुलकर के द्वारा भी प्रजाजनों को "हामा" का ही दण्ड दिया जाता था। इसके पश्चात् पल्य के प्रस्सी करोड़ भाग व्यतीत हो जाने पर कान्तिमाला के पति बुद्धिमान यशस्वी नाम के कुलकर उत्पन्न हुये। आपके शरीर की ऊँचाई ६५० धनुष और कान्ति प्रियंगु मरिंग के सदृश थी॥ ८७-८८ ।। पल्प के सौ करोड़ भागों में से एक भाग (
पल्य ) प्रमाण आयु थी। ज्ञान नेत्र एवं यश से विभूषित आपने भी "हा-मा ' दण्ड नीति का ही प्रवर्तन किया था॥८६॥ उस समय पुत्र उत्पत्ति के बाद माता पिता बहुत काल तक जीवित रहने लगे तब कुलकर ने पुत्र उत्पत्ति का महामहोत्सव करने का उपदेश दिया। अर्थात् पुत्र उत्पत्ति के बाद लोगों से महोत्सव करवाये ||६||
अब अभिचन्द्र और चन्द्राभ इन दो कुलकरों की उत्पत्ति प्रादि का एवं कार्यों का वर्णन करते हैं :