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________________ २५८ ] सिद्धान्तसार दीपक रक्ता, रक्तोदा, गङ्गा और सिन्धु इन ६४ नदियों में से प्रत्येक नदी की लम्बाई सोलह हजार पाँच सौ उन्तीस योजन दो कोस और एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण है। अर्थात् १६५२६४] योजन और दो कोस प्रमाण है । sarat विदेहक्षेत्रस्य पूर्वापरेणायामः कथ्यते : मेरोविष्कम्भी दशसहस्रयोजनानि । भद्रशालवनद्वयो. चतुश्चत्वारिंशत्सहस्रयोजनानि च षोडश विषयानामेकी कृते विस्तरः पञ्चत्रिंशत्सहसचतुःशत षडुत्तरयोजनानि । श्रष्टवक्षाराद्रीणां पिण्डीकृतो व्यासः चतुःसहस्रयोजनानि । षविभङ्गनदीनामेकत्रीकृतो विष्कम्भः सार्धंसप्रशतयोजनानि । देवारण्यभूतारण्यवनद्वयोर्मेलिता विस्तृतिः पञ्चसहस्राष्टशतचतुश्चत्वारिंशद्योजनानि । एवमेतेषां मेवादीनामेकत्रीकृतो व्यासः विदेहस्यायामो लक्षयोजन प्रमाणो भवति । I अर्थः- :- श्रब विदेहक्षेत्र का पूर्व - पश्चिम आयाम कहते हैं :-- सुदर्शनमेरु का विष्कम्भ १०००० योजन, दोनों भद्रशाल बनों का ४४००० योजन, सोलह देशों का एकत्रित विस्तार ३५४०६ योजन, आठ दक्षार पर्वतों का एकत्रित व्यास ४००० योजन, छह विभङ्गा नदियों का एकत्रित व्यास ७५० योजन और देवारण्य भूतारण्य दोनों वनों का एकत्रित व्यास ५८४४ योजन प्रमाण है । इन सब मेरु आदि का एकत्रित व्यास ( १००००४४०००+ ३५४०६ + ४०००+७५० + ५८४४ = ) एक लाख १००००० योजन होता है, विदेह क्षेत्र का पूर्व-पश्चिम आयाम भी यही एक लाख योजन प्रमाण है । अब २६ श्लोकों द्वारा विदेह का विस्तृत वर्णन करते हैं —— विदेहक्षेत्रदेशेषु सर्वेषु च पुरादिषु । मरिणममयास्तुङ्गा निप्रासादपंक्तयः || १४७ ॥ उत्तुङ्गतोरणाबीसा रत्न बिम्बशर्त भृताः । रत्नोपकरणैः पूर्णा न कुदेवालयाः क्वचित् ॥ १४८ ॥ सन्ति बह्वषः स्फुरद्दीप्राणिमेन्द्र विष्य मूर्तयः । सुरेश्चाचिता बन्धा न नीचदेवमूर्तयः ॥ १४६ ॥ तत्रत्यैः सर्वदा दक्षैरन्ते जिनमूर्तयः । विश्वाभ्युदयसर्वार्थ सिद्धयं नाना विधार्चनं ॥। १५० ।। विवाहजातकर्मादि मङ्गलेष्वखिलेषु च । परमेष्ठिन एवाहो न क्षेत्रपालकादयः ।। १५.१ ।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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