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अष्टमtsfaer:
सिद्धकूटं च वत्साख्यं सुवत्साकूटसंज्ञकम् । त्रिकूटाह्वयमेतानि कूटानि शिखरेऽस्य वं ॥ ५५ ॥ तदनन्तरमेवास्ति सुस्ता विषयः शुभः । मुनिषेवलिसंघाद्य भूषितोऽद्विसद्विः ॥ ५६ ॥ तन्मध्ये विद्यते दिव्या कुण्डला नगरी युता । रत्नशालप्रतोत्याय इचैत्यालयश्च धर्मिभिः ॥ ५७॥ ततस्तप्तजलाभिख्या विभंगा निम्नगा भवेत् । कुण्डोत्थादेश सीमान्ता बनवेद्यादिवेष्टिता ॥ ५८ ॥ पुनर्महान्महावत्सा विषयोऽस्ति शुभाकरः । ग्रामपलन पेटा जिनेन्द्रभवनांकितं ॥ ५६ ॥ तन्मध्ये नाभिवद्भाति नगरी खापराजिता । जितेन्द्रियेजिनागाजिनकल्याणकोत्सवः ॥ ६०॥ ततो वैश्रवणोनाम्ना वक्षारोहेमसन्निभः । सिद्धकूटं महावत्सानामकूटं द्वितीयकम् ||६१|| कूटं च वत्सकावत्याख्यं वैश्ववरणसंज्ञकम् । एतंश्चैत्यसुरागायुतः कूटः स मण्डितः ॥ ६२ ॥
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अर्थः- देवारण्य के आगे पश्चिम दिशा में अर्ध कोश अवगाह (नीव) और पूर्वोक्त उत्सेध एवं विस्तारसे युक्त एक दिव्य वन बेदी है ।। ५१|| वेदी की पश्चिम दिशा में महान वत्सा नामक देश है, जिसके गङ्गा सिन्धु नदो और विजयाधं पर्वत के द्वारा छह खण्ड हुवे हैं, उनमें से प्रार्य खण्ड के मध्य में सुसोमा नाम की एक श्र ेष्ठ नगरी है, जो धर्म की सीमा को करने वाली अर्थात् धर्म को सीमा यहीं तक हो है मानो ऐसे सार्थक नाम को धारण करने वाली और मुनिगणों एवं धार्मिक श्रावक गरणों के द्वारा सुशोभित है ।। ५२-५३ ।। वत्सा देश के आगे पश्चिम में त्रिकूट नामक श्रेष्ट वक्षार पर्वत है, जिसके शिखर पर जिनचैत्यालय और देवालयों से अङ्कित चार कूट हैं ||२४|| सिद्ध कूट, वत्सा कूट, सुवत्सा कूट और त्रिकूट ये चार कूट उस वक्षार पर्वत के शिखर पर है ।। ५५|| इसके बाद ही मन को अभिराम सुवत्मा नाम का देश है, जो मुनिगणों, केवलियों और चतुविध संघों से विभूषित तथा पर्वतों सरिताओं और वनों आदि से संयुक्त है ! उस देश के मध्य में रत्नों के शाल (परकोटा) प्रतोली आदि से एवं चैत्यालयों से युक्त तथा धार्मिक जनों से व्याप्त कुण्डला नाम की दिव्य नगरी है ।। ५६-५७।। सुवरसा देश के पश्चिम में सप्तजला नाम की विभङ्गा नदी है, जो कुण्ड से निकलो है, देश के बराबर लम्बी है और