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________________ पृष्ठ सं० ८४ [ ३.] क्रम सं० पृष्ठ सं० क्रम सं. १७ जीयों के नेत्र फोड़ने का और अंगोपांग- | ३ प्रादि के सोलह द्वीपों के नाम ५३ छेदने का फल ४ द्वीपसमुद्रों की स्थिति व प्राकृति १८ दूसरों के प्रति चित्त में उत्पन्न होने वाले ५ द्वीपसमुद्रों की संख्या का प्रमाण पाप का फल ६ द्वोपसमुद्रों का व्यास १६ मद्यादि अपेय पदार्थ पीने का फल ७ सूची व्यास का लक्षण २० परस्त्री सेशन का फल ५ अढाई द्वीप पयंत के द्वीपसमुद्रों का सूची २१ जीवों को छेदन भेदन मादि के दुःख देने व्यास का फल २२ मांसभक्षण का फल १० बादरसुक्ष्म क्षेत्रफल प्राप्त करने की विधि ८७ २३ भिन्न भिन्न दुःखों का कथन ११ वलयाकार क्षेत्र का स्थूल सूक्ष्म क्षेत्रफल ५७ २४ गवं करने का फल १२ जम्बूद्वीपस्थ क्षेत्रों एवं कुलाचलों के नाम ८८ २५ अयोग्य स्थान में शयन करने का फल १३ कुलाचलों का वर्ण २६ सप्त व्यसन सेवन का फल १४ भरतक्षेत्र के व्यास का प्रमाण २७ वैरविरोध रखने का फल २८ असुरकुमारों द्वारा दिये जाने वाले दुःख ७४ १५ क्षेत्र एवं कुलाचलों का विस्तार २६ दुःखों के प्रकार एवं उनकी अवधि | १६ कुलाचलों का व्यास १७ कुलाबलों की ऊंचाई का वर्णन ३० नारकियों द्वारा चिन्तित विषयों का वर्णन ७५ | १८ जीवा, धनुपुष्ठ, लिफा और पार्श्वभुजा ३१ नारकी-शरीरों के रस, गन्ध और स्पर्श के लक्षण का वर्णन १६ कुलाचलों के गाध का एवं उनपर स्थित ३२ अपृथक् विक्रिया का कथन कूटों का प्रमाण ३३ उपसंहार २० महाकूटों के नाम और स्वामी ३४ पापाचारी जीवों को शिक्षा २१ कूट स्थित जिनालयों का वर्णन १०० ३५ धर्म को महिमा २२ कुलाचलों के पाश्वं भागों में वन खंडों की स्थिति एवं प्रमाण ३६ चारित्र धारण करने की प्रेरणा २३ वन वेदियों को स्थिति एवं उनके प्रमाण १०१ ३७ अन्तिम मंगलाचरण २४ पनवेदिका एवं देवों के प्रासादों का चतुर्थ अधिकार/मध्यलोक वर्णन वर्णन १ मंगलाचरण ८१ | २५ कूटों का अन्तर एवं विस्तार २ मध्यलोक वर्णन की प्रतिज्ञा एवं उसका |२६ कुलाचलस्थ सरोवरों के नाम व उनका प्रमाण २२ विस्तार १०४ १०१ १०२
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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