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________________ २१६ ] सिद्धान्तसार दीपक खण्डों में से प्रत्येक खण्ड का विस्तार ७१४ योजन पांच हजार छह सौ छयासठ धनुग, दो हाथ और सोलह अंगुल प्रमाण है ॥१४६-१५०।। अब इस उपर्युक्त प्रमाण को लाने का विधान कहते हैं :-- रक्तारक्तोदाव्यासोनकच्छादेशत्रिभागोकृतः विजया पावें प्रार्य म्लेच्छखण्डानां प्रत्येक विष्कम्भः चतुर्दशाग्रसप्तशतयोजनानि पंत्रसहस्रषट्शतषट्षष्टिवनूषि च द्वौ करो षोडशांगुलानि ! अर्थ:-रक्ता-रक्तोदा के व्यास से हीन कच्छा देश के व्यास को तीन से भाजित करने पर विजया के समीप आर्यादि छह खण्डों में से प्रत्येक खण्ड का विस्तार प्राप्त होता है। यथा-कच्छा देश के विष्कम्भ का प्रमाण २२१२४-३४६४२ रक्ता-रक्तोदा का दि०):३७१४ योजन, ५६६६ धनुष, २ हाथ और १६ अंगुल प्रत्येक खण्ड का विस्तार है ।। अब सीता के तट पर स्थित तीन खण्डों का विस्तार, क्षेमपुरी को अवस्थिति, प्रमाण एवं अन्य अन्य विशेषतामों का वर्णन करते हैं : सीतातटे त्रिखण्डानां विष्कम्भः षट्शतानि च । चरणवत्यधिकान्येय योजनानां पृथक् पृथक् ॥१५१॥ गय्यूत्येकषांशेनोनानि क्षेमाह्वया पुरी । प्रार्यखण्डस्य मध्योऽस्ति महती धर्ममातृका ॥१५॥ योजनद्वादशापामा नवयोजनविस्तृता । सहस्रगोपुरद्वारः क्षुल्लकद्वारपंक्तिभिः ॥१५३।। शतपञ्चप्रमै रत्नमयः खातिकयावृता । चतुःपथसहस्रः सहस्रद्वादशवीथिभिः ॥१५४॥ तुङ्गसौधजिनागार-जैनसंजिनादिभिः । धर्मोत्सवशतैनित्यं भाति धर्मखनीव सा ॥१५५।। मिथ्यात्वमठदुःशास्त्रकुविलिङ्गिवजिता । मिथ्यामतकुपाखण्डिदूरा वर्णत्रयान्विता ।।१५६।। अत्रसप्तमहामेघा भ्रमराञ्जनसन्निभाः। वर्षाकाले च वर्षन्ति सप्तसप्तदिनान्यपि ॥१५७।। कुन्देन्दु सदशा द्रोणमेघा द्वादशसंख्यकाः । महासलिलसम्पूर्णा योग्यं कुर्वन्ति वर्षणम् ॥१५॥ .
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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