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________________ २१२ ] सिद्धान्तसार दीपक अर्थ:--विजयाधं पवंस के दश योजन बिस्तीर्ण शिखर तल पर सिद्ध, दक्षिणा, खण्डप्रपात, पूर्णभद्र, विजयाचं, माणिभद्र, तमिस्रगुह, उत्तरार्ध और वैश्रवण नाम के नौ कूट हैं। इनमें से प्रथम सिद्धकूट पर पूर्व वर्णन के अनुसार ही जिनचैत्यालय है। खण्डप्रपातकूट पर नमाली ( नृत्यमाल ) और तमित्र गुह कूट पर कृतमाली तथा अवशेष छह कूटस्थ प्रासादों में अपने-अपने कूद नामधारी व्यंतय देव रहते हैं ॥११६-११६।। कूटों की चौड़ाई मूल में सवा छह (६) योजन, मध्य में चार योजन ढ़ाई कोस ( ४ योजन २३ कोस पावर शिस्त्रर पर तीन ( ३ गोलन पमाणा है । कुट के मूलभाग की अर्थात् प्रादि की उत्तम परिधि का प्रमाण बीस योजन, कूट के मध्य भाग की मध्यम परिधि का प्रमाण कुछ कम पन्द्रह योजन और शिखर पर कुटों की परिधि का प्रमाण कुछ अधिक नो योजन प्रमाण है ।।११६ १२२।। अब विजयाधस्थ तमिस्र एवं प्रपात गुफा का सविस्तार वर्णन करते हैं :--- पञ्चाशद्योजनायामे योजनाष्टसमुन्नते । ग्रहे तमिश्रकाण्डप्रपातास्ये स्तोऽत्र पर्वते ॥१२३॥ योजनद्वादशज्यासे तिमिरोष्माभिपूरिते । महावज्रकपाटद्वयाङ्किते शाश्वते शुभे ।।१२४॥ अस्योमर्योदनित्यं बने विक्रोविस्तृतम् । वेदिकातोरणयुक्त जिनालयपुरादिभिः ।।१२५।। इत्येषा वर्णना सर्वा विदेहे द्विविधेऽखिले । द्वात्रिशद्विजयार्धानां समानास्त्युन्नतादिभिः ॥१२६॥ अर्थ :-इस विजयाध पर्वत में तमिस्र और प्रपात नाम की दो गुफाएँ हैं, जो पचास योजन लम्बो, पाठ योजन ऊँची बारह योजन चौड़ी, अन्धकार और उष्णता से भरी हुई, दो महावज्र कपाटों से युक्त, शाश्वत और शुभ हैं ।। १२३-१२४|| पर्वत की दोनों दिशाओं में जिन चैत्यालयों, नगरों, वेदिकानों एवं तोरणों से युक्त दो कोम चौड़े शाश्वत वन हैं। इसी प्रकार का यह समस्त वर्णन पूर्व विदेह, अपर विदेह में अथवा बत्तीस विदेहों में और बत्तीस विजयाओं की ऊँचाई आदि में समान रूप से है ।।१२५-१२६।। अब चौंसठ कुण्डों का वर्णन करते हैं :-- नोलाद्रपधःस्थ भूभागे साद्विष्टियोजनः । विस्तृते चावगाहाव्य दशयोजनसंख्यया ॥१२७।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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