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________________ २१. ] सिद्धान्तसार दीपक का विस्तार ५०० योजन प्रमाण है, अतः ३३६८४-५००२१६५९२० योजन कन्छा देश । के अायाम का प्रमाण प्राप्त होता है ।।१०३-१०॥ प्रब कच्छ देश स्थित विजयाध पर्वत का वर्णन करते हैं :-- अस्य देशस्य मध्येऽद्ध विजयार्धाचलो महान् । शुक्लवर्णः समुत्तुङ्गः पंचविंशतियोजनः ॥१०६॥ पंचाशयोजनच्यासो भूम्यवगाहसंयुतः। क्रोशाग्रयोजनः षभिः स्पाद्विधेशामराश्रितः ।।१०७॥ विजयव्यासमानेन पूर्वापरायतः समः । मूनि स्वोच्चचतुर्थांशतुङ्गकूटनवाङ्कितः ॥१०॥ दशयोजनमभ्येत्यभूमेरस्य यो दिशोः। श्रेण्यौ द्वे भवतो रम्ये दक्षिणोत्तरसंज्ञिके ।।१०।। अद्रिदीर्घसमायामे दशयोजनविस्तृते । तन्मध्येऽस्त्यद्रिविस्तीर्णस्त्रिशत्प्रमाणयोजनः ।।११०॥ तयोः श्रेण्याईयोः सन्ति नगराणि खगामिनाम् । महान्ति पंचपंचाशत्प्रत्येक भूषितानि च ॥१११।।। जिनागारमहासौधः शालयोपुरसद्वनः । प्रागुक्तनामदीर्घादिवर्णनान्तर्य तान्यपि ॥११२।। पुनर्वयोविशोगत्वा दशास्य योजनानि च । प्रागुक्तायामविस्तारे श्रेण्यौ द्वे स्तो मनोहरे ॥११३॥ सन्त्येतयोद्धयोः श्रेण्योर्बहदिव्यपुराणि च । सौधर्मशानकल्पस्थाभियोगिक सुधाशिनाम् ।।११४।। ततोऽप्यूर्व महाद्रेश्च गत्या सत्पञ्च योजनान् । दशयोजनविस्तीर्ण मस्तकं स्याम्मनोहरम् ॥११५॥ अर्थ:-इस कच्छ देश के मध्य में विजय-देश को प्राधा करने वाला शुक्ल वर्ण का एक महान विजयाय नाम का पर्वत है। जिसकी ऊँचाई पच्चोस योजन, गुथ्यास पचास योजन, अवमाह (नीव) सवा छह योजन तथा पूर्व पश्चिम लम्बाई कच्छ देश के व्यास सदृश अर्थात् २२१२ योजन ३३ कोश है। इस पर्वत पर विद्याधर और देवगण निरन्तर निवास करते हैं। इसके शिखर तल पर पर्वत की ऊँचाई के चतुर्थभाग प्रमाण ऊँचाई वाले नौ कूट अवस्थित हैं ॥ १०६-१०८ ॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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