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सिद्धान्तसार दीपक इन (पाठों) दिग्गज पर्वतों की ऊँचाई सौ योजन, भूविस्तार सौ योजन और शिखर तल का विस्तार पचास योजन प्रमाण है। इन पर्वतों के शिखर तोरण आदि से युक्त रत्तमय प्रासादों, रनों, वेदियों एवं अद्भुत वैभवशालो जिन चैत्यालयों से अलंकृत हैं ॥६-६१||
पूर्वादि दिशात्रों में पद्म, नील. स्वस्तिक, अञ्जन, कुमुद, पलाश, अवतंश मौर रोचन नाम के आठ दिग्गज पर्वत हैं । अर्थात् सुदर्शनमेरु के पूर्व दिशा गत भद्रशालवन के मध्य से बहने वाली सोता के उत्तर तट पर पद्मोत्तर और दक्षिण तट पर नीलवान् नाम के दिग्गज हैं। इसी मेरु को दक्षिण दिशा गत देवकुरु भोगभूमि के मध्य सोतोदा महानदी के पूर्व तट पर स्वस्तिक और पश्चिम तट पर अञ्जन नाम के दिग्गज हैं। सुमेरु को पश्चिम दिशागत भद्र शाल वन के मध्य मोतोदा नदी के दक्षिण तट पर कुमुद और उत्तर तट पर पलाश नाम के दिग्गज हैं, तथा मेरु को उत्तर दिशागत उत्तरकुरु भोगभूमि के मध्य सीता के पश्चिम तट पर प्रवर्तश और पूर्व तट पर रोचन नाम के दिग्गज पर्वत हैं । (श्लोकार्थ) इन दिग्गजों के शिखरों पर स्थित मणिमय भवनों में पूर्व पुण्य के उदय से अपने अपने पर्वतों सदृश नामों से युक्त पाठ न्यन्तर देव अपने अपने देव देवियों के परिवार से युक्त होते हुये सुख पूर्वक निवास करते हैं ।।६२-६४॥ प्रब विदेह नाम को सार्थकता एवं उसके भेद प्रमेव कहते हैं:--
विदेहा मुनयो पत्र भवन्त्यनेकशोऽनिशम् । रत्नत्रयतपोयोगः ससार्थनामभनमहान ॥५॥ विहो राजते वेदियक्षाराद्रघन्तराश्रितः । विभङ्गाभिर्यतः पूर्वापर वनेक भेदभाक् ॥१६॥ विभक्तः सोतया पूर्वविदेहोऽसौ द्विधा भवेत् ।
उत्तराख्योऽपरो बक्षिणश्चेति स द्विनामभत् ॥६७|| सोतोदया कृतो द्वेधा परदिग्भागसंस्थितः । दक्षिणोत्तरमेवाभ्यां स्यादिदेहोऽपराभिषः || सोताया उत्तरे भागे नीला दक्षिणेऽस्ति च ।
उत्तरप्राग्यिवेहः पूर्वे हर तरकुरुक्षिते ॥६६।। अर्थ:-रत्नत्रय और तप के योग से यहाँ पर अनेक मुनिराज निरन्तर देह से रहित अर्थात् सिद्ध होते हैं, इसलिये वह "विदेह" इस महान सार्थक नाम को धारण किये हुये है। वेदियों और वक्षार पर्वतों से अन्तरित, विभङ्गानदियों से युक्त तथा दो और अनेक भेदों को धारण करता हुमा विदेह क्षेत्र शोभायमान है ॥६५-६६॥ ( सुदर्शनमेझ से अन्तरित होता हुमा) पूर्णविदेह सीता महानदी के द्वारा उत्तर विदेह और दक्षिण विदेह के नाम से दो प्रकार का है। इसी प्रकार सीतोदा महानदी